निराशा में आशा की किरण का काम करती है मोना अशोक वर्मा की कविताएं

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

उमेश कुमार सिंह

मोना वर्मा एक प्रतिबिंब है हिन्दुस्थान के आम आदमियों का जो कि हर वक्त संघर्ष करते हैं, जीवन का स्तर ऊँचा करने के लिए चाहे वास्तविकता का हो या विचारों का हो। इन्होंने जो क्रूरता देखी हिन्दुस्थान के बंटवारे के वक्त अपने छोटी सी उम्र में, उसके घाव वो कभी भूल न पाई और शायद इसी लिए वे बेहद संवेदनशील है और किसी की व्यथा सहन नहीं कर पाती। 

कविता लिखना मोना जी के लिए स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, जिंदगी के हर क्षण के अनुभवों को वो सहजता और सरलता से कलम से उतार पाती है। शब्द सरल लिखना इनके मन की व्यथा को व्यक्त करते है। मोना जी की कविताएं जिंदगी की निराशता से शुरू तो होती है पर होती है आशावादी, जैसा कि उनका अपना स्वभाव है। 

डायमण्ड बुक्स द्वारा प्रकाशित बुक ‘रात वीराने में कुछ और भी लगती है गहरी’ जिसके लेखक है मोना अशोक वर्मा। मोना जी मन की निर्मलता, विचारों की कोमलता और जिंदगी के सुख और दुख भरें अनुभवों से मोना ने इन कविताओं को पिरोया है। 1981 से इन्होंने लिखना शुरू किया और आज तक ढेर सारी कविताएं इनके डायरी में बंद थीं। इसी डायरी में से मैंने कुछ कविताएँ निकालकर इस गुलदस्ते में सजाया है। मुझे जरा भी संदेह नहीं कि आप के दिल को भी ये कविताएं छू जाएंगी और आप इन्हें बार बार सराहेंगे।

मोना अशोक वर्मा का कहना है कि ये मेरा पूरा काव्य संग्रह है। इनमें मेरे 2014 और 2019 की प्रकाशित कविताएँ भी शामिल हैं। उम्र मेरी काफी बढ़ गई है, इस दौरान कई आशावादी और कई निराशावादी विचार मन में से गुजरे हैं। इन सब को मैंने जाना है, परखा है और जो भी मेरे मन पर गुजरती थी, उसे मैंने शब्दों में पिरोया है। जब पिरोया है तो दुनिया को दिखलाना भी हैं, तो अपने चाहने वालो को मेरी कविताओं का संग्रह मैं पेश कर रही हूँ, अपने 83वे साल में। आशा है, ये सबको पसंद आएगा। इस संग्रह में मैंने आशोक जी की 2 कविताएँ “माँ मेरी माँ” और “मन का डर” भी शामिल की हैं। आशा है, आप इन्हें भी सराहेंगे।

1.शब्द मालुम है व्यर्थ नहीं जाते 

पहले सोचती थी क्या लिखूं कैसे लिखूं 

नहीं समझ आता 

किन्तु अंतर आत्मा मुझसे कहती 

लिखा कर मोना लिखा करो 

तेरा आत्म विश्लेषण क्या जाने कब तुझको 

सत्यम् शिवम् सुंदरम् दिखा जाए 

अब मैं लिखा करती हूँ 

अपने अंदर की अनुभूतियों 

बिना रंगे चुने 

कागज पर उतार देती हूँ 

2. आंखिया

अखियों से अश्क गिरे 

गिर गिर गिरते रहे 

पलके भीगती रहीं 

मोती थे आँसू 

रहस्य था 

जलती ज्योति की लौ थी

हृदय में शांति 

आस उम्मीदों का सागर।