रोम-रोम में मधुकण

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


विरह विची में मिश्रित अश्रुकण-

सुर-ताल बने मेरे करुणा-धन।


विस्मृत मंजु मुख से रेखा स्मित,

हृदय तार हुए फिर आज झंकृत।

तम में दामिनी हुई स्थित-

नीरव मन में अलि गुंजन।


मिलन रेखा के बुनकर हैं तारे,

कुसुमित भावों से सजे सितारे।

नयनों में स्वप्न सजे फिर न्यारे-

शिथिल चरण में आज कंपन।


जीवन मेरा टूटी वीणा का तार,

तेरे प्रीत ने दिया पुनः आकार।

तृषा से आकुल अवनि पर तुषार-

रोम-रोम में आज मधु-कण।

     

डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ )