युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
अभी कुछ ही समय पहले प्री बोर्ड का एग्जाम शुरु हुआ था।
स्कूल परिसर में स्न्नाटा छाया हुआ है।एग्जामिनर्स क्लास में पुरी दक्षता और सजगता का परिचय देते हुए तन्लीनता के साथ अपनी-अपनी ड्यूटी दे रहे हैं।तभी अचानक किसी तरफ से पन्ने फड़फड़ाने की आवाज आती है।एग्जामिनर चौंक जाता है।जैसे ही पीछे मुड़कर देखता है कमलेश सकपका जाता है।और अपने आंसर शीट के नीचे गाइड को छुपाते हुए सावधान होने की कोशिश करता है।पर एग्जामिनर भांप जाता है,और पास जाकर रंगे हाँथ पकड़ लेता है।
बिना विलम्ब किये उसके गाइड को छिन लेते हैं।फिर कमलेश को घूरते हुए उसे पकड़ कर ऑफिस ले आते हैं।और फिर उसको प्यार से समझाते हुए इसके दुष्परिणाम से अवगत कराते हैं।कमलेश अपराधी की तरह सिर निचा किये सब सुन रहा था। और दबी काँपती जबान से सारी.. सारी.. कहे जा रहा था।फिर उसको पुनः क्लास में बिठा दिया जाता है।कुछ समय बाद एग्जाम का टाइम खत्म होने पर कमलेश चला जाता है।
ये क्या!!
दूसरे दिन फिर वही...गाइड से नकल....!
फिर तीसरे दिन भी वही नकल...!
जब एग्जामीनर से रहा नही गया तो वह परेशान होकर उसे अपने ऑफिस ले जाकर कहा-
इस बार बिना गुस्साए एग्जामिनर ने कहा-
"बेटा अब बहुत हो गया...!"
पर!अब तुम्हारे साथ...कहते हुए रुक जाता है।और फिर आगे कहते हैं-
आखिर! में तुम ऐसा गलत कार्य क्यों कर रहे हो?
तब कमलेश पुनः झिझकते हुए कहता है-
"मम्मी पापा...दोनो अपने-अपने ऑफिस वर्क में
बिजी रहते हैं,मेरी पढ़ाई से उनको कोई सरोकार नही,
ऊपर से मुझे हाउस वर्क में अलग लगा देते हैं।इस कारण
मुझको पढ़ाई में मन नही लगता।"
तब एग्जामिनर कहता है-
"पर चीटिंग करना तो गलत है।"
और फिर अपराधी की तरह कमलेश सिर हिला देता है।
कुछ दिनों बाद पैरेंट्स मीटिंग होती है,सारे बच्चों का रिजल्ट
बहुत बढ़िहा आता पर कमलेश सभी विषय में फेल रहता है।
कमलेश के पैरेंट खरी-खोटी सुनाते हुए स्कूल मैनेजमेंट से नाराजगी जाहिर करते हैं।तब इनकी नाराजगी दूर करते हुए स्कूल का प्रिंसिपल अंतिम मोटिवेशनल स्पीच देते हैं-
"पैरेंट्स मटिंग में उपस्थित सम्मानीय पैरेनेंट्स और प्यारे बच्चों
आज के रिजल्ट्स के लिए आप सभी को कोंग्राचूलेशन!!और
जो बच्चे अच्छा परफॉर्मेंस नही कर पाए हैं उनको भी...!
सभी पैरेंट्स से मै यही कहना चाहूंगा की कोई भी बच्चा
कमजोर और प्रतिभा विहीन नही होता,उनको मात्र हमें अच्छा अवसर और माहौल देने की आवश्यकता है।हम स्कूल
में अच्छा करने की भरपुर कोशिश करते हैं,पर!घर में पैरेंट्स
कितना अच्छा कर पाते हैं? सोचने और चिंतन करने वाली बात है। क्या उन्होंने कभी सोंचा?क्या वह अपने बच्चों को अपना कीमती समय दे पाते हैं?जितना जरूरी अपना जॉब है उससे कहीं ज्यादा जरूरी बच्चों को समय देना है।"
इतना कुछ सुनने के बाद कमलेश के पैरेंट्स को गलती का एहसास होने लगता है। और अपनी लापरवाही पर अफ़सोस करते हुए प्रिंसिपल से क्षमा याचना करते हैं।और भविष्य में ऐसी गलती नही करने का भरोसा दिलाते हुए वहां से निकल पड़ते हैं।
अशोक पटेल "आशु"
मेघा,धमतरी छ ग
९८२७८७४५७८