समय बर्बादी के फंडे

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

एक समय की बात है। एक छोटे से गाँव झुमरीतलैया में भजनराम नामक व्यक्ति रहता था। भजनराम समय गंवाने की कला में माहिर था। उसने इस कौशल में पूरी तरह से निपुणता प्राप्त कर ली थी कि बिना किसी उपयोगी काम के उसे पूरा दिन कैसे बिताना है। वास्तव में वह समय गंवाने में इतना अच्छा था कि अन्य गाँव के लोग अक्सर उसकी योग्यता की प्रशंसा करते रहते थे क्योंकि उसने किसी भी प्रकार के उपयोगी काम से बचने की उसकी क्षमता में महारत हासिल कर ली थी।

भजनराम का दिन उसकी सुबह से होती है। वह सवेरे उठ कर कुछ देर छत की ओर देखता रहता और जीवन के महान रहस्यों पर विचार करता रहता। अगले दो घंटे तक इसी में व्यस्त रहता था। फिर वह आज के लिए क्या पहनें जैसे कठिन काम करने की दिशा में बढ़ जाता। इस प्रक्रिया में भजनराम हर कपड़े को देखता जिससे अच्छा खासा वक्त बीत जाता। यह काम उसके हर दिन की आदत में शुमार था। आश्चर्य की बात तो यह है कि वह कइयों कपड़े देखने के बाद लुंगी पहन लेता। उसका मानना था कि उधर कपड़ों और लुंगी दोनों का अपमान नहीं होना चाहिए। दोनों का बराबर सम्मान करना चाहिए। फिर चाहे एक का सम्मान केवल देखकर तो दूसरे का सम्मान पहनकर करना पड़े।

कपड़ों के पीछे समय बरबाद करना भी एक कला है। इस कला का ज्ञान जो सीख लेता है वह आगे चलकर अभिनेता या राजनेता भी बन सकता है। कुछ अभिनेता तो हजारों कपड़ों के बीच भी खुद को नंगा पाते हैं इसीलिए वे कभी-कभी नंगधड़ंग अवतार से प्रशंसकों का जीवन धन्य करते हैं। भजनराम किसी काम को करने से बचाने के लिए इसी तरह की कई चीजें करता था। मसलन ए प्लस बी होल स्केवयर का फार्मूला बदल-बदलकर उसमें से एक्स्ट्रा टू ए बी निकालना। गटर से में पाइप डालकर चाय बनाना। टेलिप्रांप्टर के धोखा दे जाने पर आँखें मटकाना या फिर गुंबदों में से मंदिर के बहाने बेरोजगारों को टाइमपास करने के रोजगार में व्यस्त रखना आदि-आदि।

जब तक दोपहर होती तब तक भजनराम बिना कोई काम किए आधा दिन बर्बाद कर चुका होता। लेकिन उसकी समय बर्बादी की हरकतें अब भी खत्म नहीं होती थीं। दाल-चावल के भरपूर भोजन के बाद, वह अपनी दैनिक घुमने-फिरने की खोज में लग जाता। वह घंटों हरी-भरी ठंडी घास या सबसे छायादार पेड़ की खोज में गाँव में घूमा करता था ताकि वह अच्छी नींद पा सके।

जब दोपहर का समय समाप्त होता तो भजनराम की समय बर्बादी की गतिविधियां और भी तेजी से बढ़ती थीं। वह किसी भी व्यक्ति के साथ बेमतलब की वार्ता करने में घंटों बिता देता था। विषय भी बड़े रोमांचित करने वाले होते थे। जैसे कि गाय की पूंछ की आवश्यक लंबाई या पगड़ी बांधने का सबसे अच्छा तरीका क्या होना चाहिए। गोमूत्र पीने से किस तरह कारपोरेट हॉस्पिटल बंद हो सकते हैं या फिर युवाओं को अंधभक्त कैसे बनाना चाहिए आदि-आदि। उसकी साधारण बातचीत कब सारहीन वार्तालाप के रूप में बदल जाती किसी को पता नहीं चल पाता था। वे भी उस बतकही के अभिन्न अंग बन जाते थे। भजनलाल की यह क्षमता वास्तव में देखने योग्य थी।

अंत में जब सूरज डूबता और गाँव अंधकार में हो जाता, तो भजनराम अपने घर की ओर प्रस्थान करता, वह भी अनुभव से भरा दिन बिताने के बाद। उसके बाद वह अपने बिस्तर पर जाकर अपने अस्तित्व की व्यर्थता का मनन करता रहता और फिर सो जाता। गाँव के लोग जो सभी मेहनती और उद्यमी थे, उन्हें भजनराम की समय-बर्बादी का शौक समझ नहीं आता था। वे अक्सर उनके दिन के घंटे बर्बाद करने पर हैरान होते थे। लेकिन उनकी अस्वीकृति के बावजूद, वे उसका हिस्सा बन जाते थे। सोचते कि भजनराम की मनमोहक जीवनशैली हम जैसों के भाग्य में कब होगी। यही सब सोच-सोचकर वे उससे इर्ष्या करते थे।

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार