युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
बयार चलि है प्यार की,
ऋतु आई पावन,बसंत बहार की।
प्रकृति ने किया है,सोलह श्रृंगार ,
खेतों में लहलहाती, पल्लवित पीत किनार ।
उड़ - उड़ चली बागों में तितलियां, करती अठखेंलिया,
चमक रही है सुंदर, सुनहरी गेहूं की बालियां।
पीले-पीले सरसों के फूल खिले हैं, नवल अवनी पर,
सुषमा अलौकिक धरती की, मोह रही हर मन ।
सुगंध बिखरी है, भीनी - भीनी मदमस्त हवा की,
गुनगुन धूप सुहानी झर रही गगन से, उजली रश्मियों सी।
प्यार ही प्यार चहूं दिशि, "आनंद" की अलख जगाएं,
भाग्य हमारे उत्तम, नैना यह सुंदर दृश्य देख पाएं।
जीवन की संजीवनी ज्योति सुरभित होती, पर्यावरण मुस्कुराता,
बच्चा, बूढ़ा हर प्राणी, बसंत ऋतु के गुण गाता।
होली के त्यौहार की अगुवाई करती, ऋतु राज बसंत,
हर्षोल्लास स्फुटित हो जाता, हर प्राणी के तन मन आनंद जीवंत ।
- मोनिका डागा "आनंद" , चेन्नई, तमिलनाडु