इजरायल के विरोध का सराहनीय फैसला

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

7 अक्टूबर 2023 से शुरु हुए गजा पर इजरायल के हमले किसी भी तरह नहीं रुक रहे हैं। पिछले 4 साढ़े 4 महीनों में लाखों जिंदगियां तबाह हो चुकी हैं। हमास को खत्म करने के नाम पर गजा के लोगों पर इजरायल की क्रूरता किसी तरह न कम हो रही है, न थम रही है। अमेरिका जैसे देशों के समर्थन से इजरायल नरसंहार को बेखौफ जारी रखे हुए है, हालांकि ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, अल्जीरिया जैसे कुछ देश हैं, जो इजरायल के खूनी खेल के खिलाफ बोल रहे हैं, मगर ताकतवर देश मिलकर न्याय के लिए उठती इन आवाजों को दबा रहे हैं। 

सत्ता पर बैठे लोगों का रुख जो भी हो, लेकिन दुनिया भर में आम जनता इजरायल की आलोचना कर रही है और गजा में मासूम लोगों के कत्लेआम को रोकने के लिए विरोध-प्रदर्शन, बहिष्कार ऐसे तमाम उपायों को आजमाया जा रहा है। इसी कड़ी में अब भारत के वॉटर ट्रांसपोर्ट्स वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (डब्ल्यू टी डब्ल्यू एफ आई) के सदस्य भी जुड़ गए हैं।

 देश के 11 बड़े बंदरगाहों पर काम करने वाले करीब 35 सौ कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली इस संस्था ने इजरायल भेजे जाने वाले उन जहाजों पर माल ढुलाई से इंकार कर दिया है, जिनमें हथियार और अन्य सैन्य सामग्री की आपूर्ति हो रही है। संस्था के महासचिव टी नरेन्द्र राव ने कहा कि हमारा संघ हर तरह के युद्ध और मासूम लोगों पर हिंसा के खिलाफ है। 

इजरायल ने इस वक्त गजा पर जो युद्ध छेड़ा है, उसने हजारों फिलिस्तीनियों को असह्य पीड़ा दी है। इस युद्ध में महिलाओं और बच्चों के चिथड़े उड़ रहे हैं। ऐसे में हमारे संघ ने निर्णय लिया है कि हथियारों से लदे सभी तरह के जहाजों पर हम काम नहीं करेंगे। उनमें माल चढ़ाने या उतारने का काम नहीं करेंगे, क्योंकि इससे उन लोगों को मदद होगी जो मासूमों को मारने में लगे हैं।

 टी नरेन्द्र राव ने सभी भारतीय बंदरगाहों के कर्मचारियों से हथियारों वाले उन जहाजों पर काम न करने की अपील की जो फिलिस्तीन या इजरायल के लिए भेजे जा रहे हैं। इसके साथ ही इजरायल से तुरंत युद्ध रोकने का आग्रह भी संघ ने किया है। डब्ल्यू टी डब्ल्यू एफ आई ने एक जवाबदेह श्रमिक संघ के तौर पर उन लोगों के साथ अपनी एकजुटता और प्रतिबद्धता दर्शाई है, जो शांति के लिए काम कर रहे हैं। 

भारत में बंदरगाह कर्मचारियों के पांच संगठन है, जिनमें से डब्ल्यू टी डब्ल्यू एफ आई ने सैन्य मालवाहक जहाजों पर काम का बहिष्कार किया है। हो सकता है अब बाकी के संगठन भी ऐसा ही फैसला ले लें। 7 अक्टूबर से अब तक एक भी सैन्य मालवाहक जहाज इजरायल नहीं गया है, लेकिन हाल ही में भारत के मुंद्रा बंदरगाह से इजरायल के लिए सामान पहुंचाया जा रहा है। 

ऐसे में डब्ल्यू टी डब्ल्यू एफ आई का यह फैसला खास मायने रखता है। गौरतलब है कि लाल सागर में हूती विद्रोहियों ने इजरायल तक जहाजों के पहुंचने का रास्ता अवरुद्ध कर दिया है। अगर यह अवरोध बरकरार रहता तो इजरायल थोड़ा कमजोर पड़ सकता था। मगर मोदी सरकार में इजरायल से दोस्ती निभाने के लिए नया रास्ता खोज निकाला है। अब भारत के मुंद्रा बंदरगाह से यूएई के बंदरगाह तक मालवाहक जहाज भेजा जा रहा है, इसके बाद सड़क मार्ग से सऊदी अरब और जॉर्डन के रास्ते इजरायल तक सामान पहुंच रहा है।

भारत इस तरह इजरायल से अपनी दोस्ती तो निभा रहा है, लेकिन ऐसा करके मानवता, विश्व शांति और अहिंसा के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं पर कितना खरा उतर रहा है, यह भी परखने की जरूरत है। बेशक इजरायल से भारत के व्यापार, वाणिज्य, रक्षा, संचार, विज्ञान इन तमाम क्षेत्रों में गहरे दोतरफा संबंध हैं। इजरायल ने भारत की कई मौकों पर सहायता भी की है। 

मगर इस वजह से उसकी ओर से हो रहे अनाचार पर आंखें नहीं मूंदी जा सकतीं। हमास के खात्मे के नाम पर इजरायल की नेतन्याहू सरकार गजा में जितना तीव्र युद्ध छेड़े हुए हैं, उसके खिलाफ इजरायल समेत दुनिया भर के शांतिप्रिय लोग आवाज उठा रहे हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने हाल ही में एक प्रेस वार्ता में कहा है कि गजा में जो कुछ हो रहा है वह युद्ध नहीं है। 

वह सिर्फ नरसंहार है। यह दो सेनाओं के बीच युद्ध नहीं है। यह अत्याधुनिक सेना और महिलाओं और बच्चों के बीच जारी युद्ध है। इतिहास में इस तरह की कार्रवाई हिटलर के अलावा किसी और देश ने नहीं की है। हालांकि इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने लूला डी सिल्वा के इस बयान पर भड़कते हुए इसे शर्मनाक, चिंताजनक और राजनीति से प्रेरित बताया है। उनका कहना है कि लूला के शब्द यहूदी लोगों और इजरायल के रक्षा के अधिकारों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास है। 

इजरायल अपनी सुरक्षा के लिए लड़ रहा है। अपनी सुरक्षा और नागरिकों के भविष्य की रक्षा की आड़ में ही इजरायल ने 7 अक्टूबर को युद्ध का ऐलान किया था और तब से अब तक वह कम से कम 30 हजार लोगों का खून बहा चुका है। हालांकि इसके बाद भी हमास कितना कमजोर पड़ा या हमास खत्म हो जाएगा, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।

 इजरायल के तर्क वैसे ही हैं, जैसे व्यापक हिंसा के हथियारों का हवाला देते हुए अमेरिका ने इराक पर हमला किया था और सब कुछ तबाह करने के बाद कहा कि उसे हथियार नहीं मिले। अमेरिका की राह पर ही उसका बनाया हुआ देश इजरायल भी चल रहा है। अमेरिका में भले सत्ता परिवर्तन हो गया है, लेकिन लोकतंत्र, विश्वशांति और सुरक्षा के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के धनी देशों को लूटने-खसोटने का आर्थिक उपनिवेशवादी खेल बिल्कुल नहीं बदला है। 

अमेरिका को ग्रेट बनाते हुए पूरी दुनिया को तबाही के रास्ते पर धकेला जा चुका है। ऐसे में लूला डी सिल्वा जैसे नेता अगर विरोध की आवाज उठाते हैं, तो उसे सुना जाना चाहिए। अगर डब्ल्यू टी डब्ल्यू एफ आई जैसे श्रमिक संगठन युद्ध सामग्री ढोने से इंकार करते हैं, तो उस फैसले की सराहना की जानी चाहिए।