युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
जमाने को बदनाम करते हुए इंसान कब मशीन बन जाता है, पता ही नहीं चलता। सुबह बसेरा छोड़कर ऑफिस जाता है टेंशन मोल लेने। आखिरकार टेंशन तो टेंशन है। यह कांट्रब्यूटरी पेंशन तो नहीं कि रिटायरमेंट के बाद एक साथ थोक में मिलेगा। यह ओल्ड पेंशन की तरह है जो किश्तों में मिलता रहता है। ऐसा नहीं है कि टेंशन मिटाने के तरीके नहीं है। हैं, लेकिन अपने तरीके के। टेंशन मिटाने के तीन तरीके होते हैं। एक शराब पीकर थोड़ी देर के लिए भुला दो। दूसरा, बसेरे में रहने वालों पर भड़ास के रूप में उल्टी कर दो। तीसरा, आत्महत्या कर लो।
ऐसे दौर में गृहस्थी करना कार्बन डाइ आक्साइड के बीच आक्सीजन की खोज करने की तरह है। आजकल की बात है। एक दंपत्ति की एक संतान थी। वह बचपन में संतान और बड़ा होने के बाद पालतु की तरह व्यवहार करने लगा। दंपत्ति संतान पर बहुत विश्वास करते थे, क्योंकि वह उन्हीं का खून था। उन्हें क्या पता कि अपनों के खून में भी मालवायरस का अटैक अक्सर हो जाता है। संतान भी माता-पिता के साथ पूरे तन-मन से ढोंग करता था, लेकिन वह भी चमकते सोने की तरह। अपने चरित्र का असली पीतल हमेशा छिपाए रखता था। माता-पिता पुरानी सोच के साथ जैसे-जैसे पुराने पड़ते जा रहे थे, वह उतना ही आधुनिक बनता जा रहा था। मटका फूटकर फ्रिज बन गया, सिलबट्टा जाकर मिक्सर, गिल्ली-डंडा कब क्रिकेट बन गया पता ही नहीं चला। माता-पिता जब भी विश्राम करना चाहते संतान उनके लिए रिक्लायनर वाली कुर्सी आगे कर देता था। सच तो यह है कि वे विश्राम नहीं संतान का स्पर्श चाहते थे। अब संतान न उन्हें प्रणाम करता था और न उनसे बात। शादी हो जाने के बाद हालात और खराब हो गए। संतान वाइफ के चक्कर में माता-पिता के साथ वाई-फाई वाला टच रखने लगा था। दूरी जैसे-जैसे बढ़ती संबंधों का नेटवर्क वैसे-वैसे कमजोर पड़ता जाता।
देखते-देखते माँ का स्वगर्वास हो गया। पिता बिस्तर पर लेटे जिंदगी के अंतिम दिन गिन रहे थे। एक दिन की बात है, जब पिता ने बेटे से पानी माँगा। सौ बार माँगने पर झल्लाते हुए एक बार बेटे ने पानी पिलाया। पिता सोया हुआ था, बेटा तेजी से पानी पिलाये जा रहा था। पानी गले में जाने के बजाए कब फेफड़ में पहुँच गया पता ही नहीं चला। पिता सांस लेने में दिक्कत महसूस कर रहे थे। बेटा समझा यह उनका नाटक है। थोड़ी देर में पिता की ईहलीला समाप्त हो गई। बेटे ने समझा कि पिता उसी के हाथों अंतिम बार कुछ पीकर मरना चाहते थे, सो वह प्रसन्न था। उसे लगा कि मैंने पिता के लिए पितृभक्त बेटे के रूप में अपनी सभी जिम्मेदारियाँ निभाई। दुनिया को भी यही लगा। ढोंग सेवा पर हमेशा भारी पड़ता है। एक बेटे के हाथों पिता की हत्या जमाने के लिए सेवा का रूप धारण कर चुका था। सच है अब मौतें सेवा के रूप में लोगों को गले लगा रही है।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार