कि ये बसंत का आगमन है..

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

अक्सर सुना करती थी

आते-जाते

जंगल में

चिड़िया की खामोशी ,

उस दिन

तुम्हारे चुप के सूनेपन  में

मैंने उगा लिए

कई पीले जंगल

कि ये बसंत का आगमन है !!

संभाले रखा हमने अब तक

कितने ही पीले पन्नों को 

सूखे फूलों की तरह ,

एक दिन

देख सकेंगे अंकुरण उनका

हम-तुम

कि ये बसंत का आगमन है !!

सरका दो एक तरफा ही

उस कोने में

ये सारे "बीते कल" ,

लिख दो कविता कुछ ऐसी

खुलकर आंखों का नीर बहे ,

पल्लवित हो जाएंगी फिर से

शब्दों की सब शाखाएं ,

कि ये बसंत का आगमन है !!

नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश