गंभीर समस्या बन रही एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति बढ़ती प्रतिरोधकता

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने डॉक्टरों से कहा है कि वे एंटीबायोटिक दवाओं का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करें और जब भी इस्तेमाल करें तो कारण बतायें। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) अतुल गोयल ने कहा है कि डॉक्टरों को रोगाणुरोधी दवाएं लिखते समय संकेत, कारण और औचित्य अवश्य बताना चाहिए। यह बढ़ते रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) की पृष्ठभूमि में है जो विश्व स्तर पर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। रोगाणुरोधी प्रतिरोध का मतलब है कि संक्रमण पैदा करने वाले बैक्टीरिया या कवक एंटीबायोटिक या एंटिफंगल उपचार के प्रति प्रतिरोधी हैं। 

इसलिए यदि अभी इसे रोकने के कदम नहीं उठाये गये तो भविष्य में संक्रमण को नियंत्रित करना मुश्किल हो जायेगा। यदि ऐसा होता है तो विशेषकर विकासशील देशों में जहां संक्रमण दर अधिक है, इसके गंभीर परिणाम होंगे। इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि एएमआर के परिणामस्वरूप संक्रमण की रोकथाम और उपचार एक चुनौतीपूर्ण कार्य बनता जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप लंबी बीमारी और मृत्यु का खतरा बढ़ रहा है। आईसीएमआर शोधकर्ता कामिनी वालिया के अनुसार, एएमआर भारत में महामारी का रूप ले रहा है। 19 जनवरी 2024 को द ट्रिब्यून में प्रकाशित समाचार के अनुसार, उनके हवाले से बताया गया कि एंटीबायोटिक दवाओं के विवेकपूर्ण उपयोग की तत्काल सलाह दी जाती है या हम प्री-एंटीबायोटिक युग में वापस आ जायेंगे। 

एएमआर एक वैश्विक चुनौती का प्रतिनिधित्व करता है। 2019 में मरने वाले 49.5लाख लोग दवा-प्रतिरोधी संक्रमण से पीड़ित थे। एएमआर सीधे तौर पर उनमें से 12.7 लाख मौतों का कारण बना। इनमें से 5 में से एक मौत 5 साल से कम उम्र के बच्चों की हुई। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में दवा-प्रतिरोधी संक्रमणों का अधिक बोझ है। 204 देशों में एएमआर से जुड़ी प्रति 100,000 जनसंख्या पर आयु-मानकीकृत मृत्यु दर के मामले में भारत 145वें स्थान पर है। 

2019 में, 297,000 मौतों का कारण, और1,042,500 मौतें सीधे एएमआर से बताई गईं। 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एएमआर को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए शीर्ष दस वैश्विक खतरों में से एक के रूप में चिह्नित किया। भारत मानव एंटीबायोटिक उपयोग में विश्व में अग्रणी है। एक लैंसेट अध्ययन के अनुसार, एटीबायोटिक दवाओं का ओवर-द-काउंटर उपयोग, जागरुकता की कमी, डायग्नोस्टिक्स का अपर्याप्त उपयोग, भीड़भाड़, क्रॉस-संक्रमण, फार्मास्यूटिकल्स द्वारा डॉक्टरों का वित्तीय मुआवजा और खराब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा भी भारत की रोगाणुरोधी प्रतिरोध समस्या को बढ़ाता है।

 एक तरफ भारत में दवाओं की ओवर प्रिस्क्रिप्शन है तो दूसरी तरफ नियामक प्रणाली बहुत अप्रभावी है। क्षय रोग, एक संचारी रोग के रूप में, एक सतत वैश्विक महामारी है जो वैश्विक मृत्यु दर और रुग्णता के उच्च बोझ के लिए जिम्मेदार है। वैश्विक स्तर पर, अनुमानित 1 करोड़ नये मामलों और लगभग 14लाख मौतों के साथ, टीबी 2019 में रुग्णता और मृत्यु दर के शीर्ष 10 कारणों में से एक के रूप में उभरा है। ग्लोबल टीबी के अनुसार, दुनिया के सभी टीबी मामलों में से 28 फीसदी भारत में हैं। 

रिपोर्ट 2022 के अनुसार 2021 में 21.3 लाख मामले सामने आये। तपेदिक (टीबी) से निपटने के लिए बजट में वृद्धि के बावजूद, भारत में संक्रामक बीमारी के कारण होने वाली मौतों की अंतरिम अनुमानित संख्या 10 प्रतिशत बढ़ गई, जो 2020 में 500,000 से बढ़कर 2021 में 505,000 हो गई, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2022 में कहा गया है। इसका मतलब है कि प्रतिदिन भारत में टीबी से 1383 मौतें होती हैं। इससे लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है और बड़ी रकम खर्च होती है।

मृत्यु और विकलांगता के अलावा, एएमआर की महत्वपूर्ण आर्थिक लागतें हैं। विश्व बैंक का अनुमान है कि एएमआर के परिणामस्वरूप 2050 तक अतिरिक्त स्वास्थ्य देखभाल लागत में 1 खरब अमेरिकी डॉलर और इससे 2030 तक प्रति वर्ष सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 1 खरब अमेरिकी डॉलर से 3.4 खरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है।

बीएमजे ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक नये अध्ययन में पाया गया है कि प्राथमिकता वाले रोगजनकों से निपटने के लिए मौजूदा टीकों के प्रभावी उपयोग और नये टीकों के निरंतर विकास से हर साल पांच लाख से अधिक लोगों की जानें बचाई जा सकती हैं। यह अध्ययन एएमआर के प्रसार को धीमा करने और रोकने में टीकाकरण सहित निवारक उपायों के महत्व पर प्रकाश डालता है समुचित नीति और विनियमन के माध्यम से इस समस्या से निपटने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों की आवश्यकता है। वैज्ञानिक रूप से एंटीबायोटिक के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा और जागरुकता बेहद जरूरी है। 

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक मान्यता प्राप्त वैश्विक खतरा है। इसलिए इसके प्रभावी प्रबंधन के लिए वैश्विक सहयोगात्मक प्रयासों की भी आवश्यकता है। हाल ही में भारत में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा हुई थी। संक्रमण नियंत्रण अकादमी के अध्यक्ष और हैदराबाद विश्वविद्यालय के मानद प्रोफेसर डॉ. रंगा रेड्डी के अनुसार जी-20 दस्तावेज अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) प्रयासों में तेजी लाने और एंटीबायोटिक्स बाजार को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।चिंता का महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि फार्मास्युटिकल्स पर कॉर्पोरेट कंपनियों का नियंत्रण है। 

उनके लिए जनस्वास्थ्य से ज्यादा प्राथमिकता मुनाफा है। यह महत्वपूर्ण है कि शोधकर्ता, सरकारें और नागरिक समाज कार्यकर्ता कॉर्पोरेट हितों की साजिशों पर नजर रखें। हमने देखा है कि कैसे वैक्सीन उत्पादक कंपनियों ने कोविड महामारी के दौरान वैश्विक स्तर पर जबरदस्त मुनाफा कमाया। भारत में फार्मास्युटिकल और वैक्सीन उत्पादक उद्योग में सार्वजनिक क्षेत्र में एक अच्छा बुनियादी ढांचा तैयार किया गया है, परन्तु अब इसका कायाकल्प करने की जरूरत।