हे राम!

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  

पीके फिल्म का एक दृश्य है। अभिनेता आमिर खान गाजर खरीदने के लिए दुकानदार को गांधी जी के चित्र वाली कई तरह की सामग्री देता है। उस पर दुकानदार कहता है, “ई कबाड़ हमरी दुकान पर काठे लारे हो?” इस पर अभिनेता गांधी जी की छवि वाला पचास रुपये का नोट देता है। 

बदले में दुकानदार गाजर देता है। तब अभिनेता कहता है- “ई फोटु का वैल्यु सिरफ एक तरह का कागज पर है। बाकी सब कागज पर ई फोटु का वैल्यु जीरो बटा लूल है।“ पीके फिल्म का यह दृश्य हमारे आज के समाज पर एक जोरदार तमाचा है। अब सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में गांधी जी की वैल्यु करेंसी तक ही सीमित है या फिर उससे बढ़कर भी है?

महात्मा गांधी करिश्माई फ़कीर बाबा थे। उन्होंने शोषितों, पीडितों, गरीबों, पथभ्रष्टों के दुखों को अपना दुख माना। दूसरों को सीख देने से पहले स्वयं को भाईचारे, धार्मिक सद्भावना, अहिंसा के अनुयायी के रूप में स्थापित किया। कुछ कर गुजरने के लिए बाहुबल या जनबल की नहीं बल्कि दृढ़ संकल्प की आवश्यकता पड़ती है। 

महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने महात्मा गाँधी के बारे में कहा था कि आने वाली पीढ़ियों को यक़ीन ही नहीं होगा कि हाड़-माँस का ये व्यक्ति कभी पृथ्वी पर चला भी होगा। यही कारण है कि महात्मा गांधी को जिसने चाहा, जैसे चाहा, अपने हिसाब अपने किताब से उनका भरपूर उपयोग किया।

 महात्मा गांधी ने जीकर जितना नहीं कमाया उतना तो उनके मरने के बाद मुन्नाभाई एमबीबीएस तो कभी लगे रहो मुन्नाभाई बनकर गांधीगिरी के नाम पर कमा गए। यह गांधीगिरी पुस्तकों तक ही सीमित रह गयी है। कार्यालयों में उनके फोटो के पीछे या तो छिपकलियाँ और आगे अधिकारी बड़े धड़ल्ले से घूस लेते नजर आते हैं। 30 जनवरी को महात्मा गांधी केवल एक बार मरे थे। अब भी देश में कई नाथूराम गोड़से हैं जो हर दिन हर पल उन्हें मारने से नहीं चूकते।   

आजकल देश का जो हाल हो रहा है उसे देख कर नहीं लगता कि कभी इस देश में गांधी जी जैसे महापुरुष भी हुए होंगे जिन्होंने देश में राम-राज का सपना देखा था। गांधी जी देश के राष्ट्र पिता माने जाते हैं लेकिन यह सच है कि जिस गांधी जी को नोट पर बने हुए हम देखते हैं और जिसे हम अपने घर की दीवारों पर टांगते या लटकाते हैं दोनों के मतलब अलग-अलग है। 

तस्वीर के सामने और तस्वीर के पीछे सबके अपने-अपने गांधी जी अपने-अपने हिसाब से होते हैं। जहाँ गांधीवादी सिद्धांत किताबों में धरे के धरे रह जाएँ और किताबें मुखचित्र देखकर बिकने लगे, वैसे देश का एक गांधी जी तो क्या असंख्य गांधी जी भी उतर आएँ तो कुछ नहीं कर सकते। 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657