युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
गाते विलाप की मृदु मौन चतुराई।
नव नेह में नहला के रुलाया जिसने,
श्यामल नैनों की उसके निष्ठुर करुणायी।
जागृति वेदना की कटु निर्झरिणी ,
बहती शीत सुधा, अश्रु है ऋणी ।
खोया विकल स्पंदन में सुख संधान,
भोले जीवन का अपार अमिय वरदान।
पथ परिचय हुआ अनजान अटल,
दिश रचता जाता अनंत तम सघन।
प्रश्न अपरचित हँसता मुझ पर,
धरोहर उत्तर के कितने ही लुट कर।
तिमिर नियति के सूने कंधों पर,
भरने चली उजियारी रिक्त पलों पर।
त्याग कर स्वप्न सजल नींद की गोदी में,
जली मैं बिखरी बावरी प्रीत रंग होली में।
_ वंदना अग्रवाल "निराली "
_ लखनऊ, उत्तर प्रदेश