युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
जागी हूं अब तक
जरूरी नींदों में भी ,
देखना,,एक दिन सो जाऊंगी
तेरी कविताओं में ही ,
बेशक गिने होंगे तुमने तारे भी
पर, क्या मेरा इंतजार ,
,,,,,इंतज़ार नहीं !!
संजोए रखा है अब तक
कितनी ही हसरतों को,
और,,कितना रहा अनकहा ही
कि जिसका कभी शुमार नहीं ,
ये लकीरें किस्मतों की
रहीं क्यों विपरीत ही ,
कभी कुछ तुम न कह सके
और,,कभी मैं भी रही चुपचाप ही ,
चलो, वक्त को तय करने दो
इश्क की सब हदें,
लोंग आते रहेंगे,,चुगते रहेंगे आंगन की धूप
फिर भले ही, हमारे हिस्से में रहे
ये पहर सांझ की !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश