आर्थिक संकट और अंतरिम बजट

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

केंद्र सरकार की ओर से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2024 को अंतरिम बजट पेश करने वाली हैं। अंतरिम बजट एक अस्थायी वित्तीय बजट है,जो वार्षिक या आम बजट से अलग होता है। आम चुनाव के बाद और नई सरकार के गठन के बाद वित्त वर्ष 2024-25 का पूर्ण बजट पेश किया जाएगा। अंतरिम बजट से सरकार अपनी आय और व्यय की रूपरेखा तैयार करती है,जिससे नई सरकार के गठन तक खर्च संबंधी कोई परेशानी नहीं हो। 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अनेक आर्थिक संकटों के बीच अंतरिम बजट प्रस्तुत कर रही हैं। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के अनुसार चालू वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की विकास दर 4 वर्ष के सबसे निचले स्तर पर 1.8 प्रतिशत पर है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 में किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा था। किसानों की आय दोगुनी करने के लिए केंद्र सरकार ने 13 अप्रैल 2016 को अशोक दलवाई समिति का गठन किया था।

 इस समिति ने 2017 में कहा था कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि विकास दर कम से कम 12 प्रतिशत रहनी चाहिए। मनमोहन सरकार में कृषि विकास दर 4 प्रतिशत के ऊपर लगातार बनी हुई थी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। वर्तमान सरकार ने भले ही कृषि विकास दर का लक्ष्य 12 प्रतिशत रखा हो, लेकिन अब स्वयं सरकार के आंकड़ों से पुष्टि हो रही है कि चालू वित्त वर्ष में यह आंकड़े 2त्न तक पहुंचना भी मुश्किल है। 

भारत में कृषि क्षेत्र सहित ग्रामीण अर्थव्यवस्था अभी गंभीर संकट से जूझ रही है। ग्रामीण क्षेत्र में निम्नस्तरीय क्रय क्षमता के कारण अर्थव्यवस्था अभी मांग के गंभीर संकट से जूझ रही है। कृषि क्षेत्र की धीमे विकास दर से ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग की भारी कमी है। ऐसे में चर्चा है कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण अपने अंतरिम बजट में प्रधानमंत्री किसान सम्माननिधि की राशि को 6 हजार से बढ़ाकर 9 हजार कर सकती हैं। परंतु सवाल यह है कि ऐसी स्थितियां क्यों आई? 

चाहे 2008 का आर्थिक संकट हो या कोरोना काल, दोनों में ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने इंजन का कार्य किया तथा देश को संकट से बाहर निकाला। परंतु इसके बावजूद सरकार कृषि क्षेत्र को लेकर गंभीर नहीं रही है। दिल्ली की सीमाओं पर एक वर्ष से ज्यादा समय तक किसानों का शांतिपूर्ण धरना- प्रदर्शन चलता रहा, जिसमें 750 से ज्यादा किसान शहीद हो गए, लेकिन अब तक सरकार श्न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानूनश् को लेकर गंभीर नहीं हुई।

 प्रधानमंत्री किसान सम्माननिधि की 6 हजार की राशि इस भीषण महंगाई में किसानों की जरूरत से बेहद कम है, इसे कम से कम दोगुनी करने की जरूरत है इससे भी ज्यादा आवश्यक है कि कृषि लागत को कम किया जाए तथा उत्पादकता में वृद्धि की जाए। कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीक की सख्त आवश्यकता है। इस समय जिस तरह से बेरोजगारी भयावह स्तर पर है, इससे बड़ी संख्या में लोग कृषि कार्य में जुटे हैं,क्योंकि उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है। 

फलत ग्रामीण परिवारों में गरीबी की समस्या और बढ़ गई है। किसानों के खेत का आकार छोटा रह गया है। 85 प्रतिशत किसानों के पास 5 एकड़ से भी कम जमीन उपलब्ध है। इस स्थिति में ग्रामीण क्षेत्र में अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में मनरेगा की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। चालू वित्त वर्ष में मनरेगा के बजट में कटौती कर दी गई थी,जबकि देश भर में मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। ऐसे में समय आ गया है कि सरकार अंतरिम बजट में मनरेगा के बजट में वृद्धि करे। 

विशेषज्ञों का आकलन है कि अंतरिम बजट में अगले वित्त वर्ष के लिए कृषि ऋ ण लक्ष्य को बढ़ाकर 22 से 25 लाख करोड़ रूपये तक कर सकती है। सरकार का यह प्रयास होना चाहिए कि प्रत्येक पात्र किसान की संस्थागत ऋण तक पहुंच हो। लेकिन इसके साथ सीमांत किसानों की कर्जमाफी भी आवश्यक है।

 सरकार जब पूंजीपतियों के लाखों करोड़ रूपयों को राइट ऑफ कर सकती है, तो किसानों की कर्ज माफी क्यों नहीं? साथ ही प्रधानमंत्री कृषि सम्माननिधि की राशि बढ़ाने की जो चर्चा लगातार वित्त मंत्रालय के गलियारे में हो रही है,क्या वह केवल चुनावी जुमलेबाजी तो नहीं? अभी मध्यप्रदेश में चुनाव से कुछ दिन पूर्व लाडली लक्ष्मी योजना के लाभार्थियों को नगद हस्तांतरण कर बीजेपी वोट लेने में सफल हो गई थी। लाडली लक्ष्मी योजना में दूसरे मद के बजट का भी प्रयोग किया गया।

 क्या सरकार केवल चुनावी लाभ के लिए लाडली लक्ष्मी योजना की तरह प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का तो प्रयोग लोकसभा चुनाव में तो नहीं करना चाहती? इस अंतरिम बजट में केन्द्र सरकार को वास्तव में कृषि क्षेत्र एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर फोकस करने की आवश्यकता है। कोविड काल और उससे 1 साल पहले के समय को नजरअंदाज करें, तो वित्त वर्ष 2023-24 में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर 21 साल में सबसे कम रहने का अनुमान है। 

इस दौरान 7.9 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। केन्द्र सरकार 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का नारा जोर-शोर से लगाती है और बताती है कि भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है परन्तु ब्रिटेन की प्रति व्यक्ति आय 47 हजार डॉलर से ऊपर है, जबकि भारत की प्रति व्यक्ति आय केवल 2450 डॉलर प्रति व्यक्ति है। भारत जीडीपी के मामले में आज दुनिया में 5वें नम्बर पर है,लेकिन वहीं प्रति व्यक्ति आय के मामले में 128वें स्थान पर है। सरकार कई बार कम प्रति व्यक्ति आय के लिए भारत की भारी भरकम जनसंख्या को मानती है। लेकिन इस तर्क में भी ज्यादा दम नहीं है। 

चीन भी एक विशाल जनसंख्या वाला देश है,लेकिन उसके बावजूद प्रति व्यक्ति आय में भारत से काफी आगे है। चीन में प्रति व्यक्ति आय 12,720 डॉलर है। भारत ने तो अमृत काल में लक्ष्य रखा है कि देश की प्रति व्यक्चि आय वर्ष 2047 तक 10,000 डॉलर होगी। सरकार के कई मंत्री तर्क देते है कि देश का जनसंख्या घनत्व काफी ज्यादा है,इसलिए भारत की प्रति व्यक्ति आय कम है। लेकिन तथ्य इस तर्क की भी पुष्टि नहीं करते। भारत में जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति किलोमीटर है,जबकि बांग्लादेश का जनसंख्या घनत्व 1253 व्यक्ति प्रति किलोमीटर है।

बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय 2793 डॉलर है। इसका प्रमुख कारण है कि बांग्लादेश ने जीडीपी विकास में ऐसे उद्योगों को प्रमुखता दी, जो अत्यंत सघन श्रम प्रधान वाले हैं,जिससे लोगों को भारी संख्या में रोजगार मिल रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था 6-7 वर्षों से रोजगारविहीन विकास की ओर अग्रसर हो रही है। अंतरिम बजट में सरकार को प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिए गंभीरता प्रकट करनी चाहिए। रोजगार सृजन व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर के लिए जीडीपी में उच्च विकास दर आवश्यक है।

 2004 से 2014 के बीच जीडीपी में कुल 183फीसदी वृद्धि रही, तो 2014 से 2023 के बीच जीडीपी में केवल 83फीसदी का इजाफा हुआ। इसके अतिरिक्त अंतरिम बजट में सरकार को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर भी ध्यान देना चाहिए। दिसंबर माह में यह सेक्टर 18 माह के निचले स्तर पर पहुंच गया। दिसंबर में मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई 54.9 पर रहा,जो नवंबर में 56 था। मैन्युफैक्चरिंग के सिकुड़ने से ग्रोथ को झटका लग रहा है। सेवाओं की तुलना में मैन्युफैक्चचरिंग क्षेत्र में रोजगार बढ़ाना एक तेज प्रक्रिया है। कारखाना के निर्माण का वास्तविक कार्य न केवल रोजगार सृजन है, बल्कि इसमें कम कुशल श्रमिकों की मांग में भी वृद्धि होती है। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को मजबूत किए बिना न तो तीव्र आर्थिक विकास संभव है और न ही आय में वृद्धि। 

ग्रोथ रेट के प्रथम एवं द्वितीय अनुमान का मुख्य मकसद सरकार को बजट निर्माण से पहले ग्रोथ रेट के भरोसेमंद स्थितियों से अवगत कराना है। प्रथम अग्रिम अनुमान में चालू वित्त के दौरान जीडीपी में वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। यह प्रथमदृष्टया संतोषप्रद लगता है,परंतु जब भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न चुनौतियों के संदर्भ में इसे देखा जाए,तो एक जटिल स्थिति दिखाई देती है। केंद्र सरकार कर्ज जाल में डूबती जा रही है। वर्ष 2014 में देश पर 55 लाख करोड़ का कर्ज था,जो अब 205 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है। कर्ज -जीडीपी अनुपात 90 प्रतिशत के खतरनाक स्तर को पार कर गया है।

 अंतरिम बजट में सरकार को बढ़ते कर्ज और कॉरपोरेट टैक्स पर विचार करना होगा। सरकार ने पिछले बजटों में कारपोरेट टैक्स में अप्रत्याशित रूप से कटौती की है, वहीं जीएसटी में जबरदस्त वृद्धि। इससे निर्धनतम लोगों पर टैक्स की भारी मार पड़ रही है। आखिर पूंजीगत लाभ पर लगने वाला कर अर्जित आय पर लगने वाले कर से क्यों कम है? इन त्रुटियों को सरकार को अंतरिम बजट में जल्द से जल्द दूर करना होगा।