प्रेम में छिपाना भी

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


आजकल हम-दोनों ही

बहुत कुछ छिपाने लगें हैं

एक दूसरे से ,

तुम रोज़ दर्ज़ कराते हो

अपनी व्यस्तताओं के किस्से,, 

या फिर,,

मन के अनमना सा होने की

अनेकों मजबूरियां ,

मैं भी 

चुप-चाप छिपाए रखती हूं 

बहुत सी बेबाक अधूरी बातें

जो कि सही अवसर की तलाश करते-करते

कब में शांत हो गईं ,,

या फिर कितनी ही ऐसी रुलाईयां

जो ठहरी हुई हैं रुआंसी सी

अब तलक ,,

और..हम दोनों ही संतुष्ट हैं

सब कुछ छिपाकर एक-दूसरे से ,

जबकि अनपढ़ नहीं हैं हमारी कविताएं

वो सब पढ़ लेती हैं,,प्रेम में "छिपाना" भी !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश