गरीब की भी औकात बड़ी होती है, मत पूछिए, भारी पड़ेगी.....!

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

संसार में जो जन्मा उसकी भी हैसियत होती हैं उसके माता-पिता की परिवार की हैसियत उसकी औकात होती है। औकात हैसियत, कूबत, क्षमता होती हैं और यह बढ़ती - घटती हैं मगर होती ही हैं।

अमीर, पदधारी या राजनीतिक ओहदे वाला अपनी औकात बड़ी समझ सकता हैं, किसी की औकात को अपनी ऊंची स्थिति - परिस्थिति से घमंड के मारी अभिमान दिखाकर आंक सकता है। मगर सामने वाले का स्वाभिमान ही उसकी औकात है और यह

औकात पूछने वाले की औकात से कतई छोटी नहीं हो सकती।

औकात शब्द कोई भी अभिमानी किसी को नीचा दिखाने के लिए जब प्रयोग करता है तो यह शब्द उसे जलील करता है। उसको पीड़ा होती है।

औकात तो हर प्राणी की भी होती है। चींटी की भी होती हैं जो बलशाली हाथी को भी परेशान कर सकती है। हर बच्चे से लेकर वयस्क, बुजुर्गों तक की अपनी औकात, हैसियत, सम्मान, कूबत

क्षमता होती है। पहलवान बलशाली होता है उसकी  क्षमता अधिक होती है समाज में मान-सम्मान और इज्जत होती है। एक बच्चे की, एक विद्यार्थी की भी होती है। औकात को घमंडी लोग, पद और सत्ता बल के घमंड में लोग औरों को उकसाने के लिए प्रयोग कर उनकी प्रतिक्रिया भड़काने का प्रयास करते हैं, गुस्सा दिलाने का काम करते हैं। ऐसे अनेक जनता के सेवकनुमा अधिकारी अपने मातहतों के प्रति निर्मोही हो जाते हैं कि पदधारी राजनेता भी जनसेवक अधिकारी की सरेआम बेइज्जती करने से नहीं हिचकते।

एक मेहनतकश से औकात पूछने की जुर्रत में हालात अव्यावहारिक हो जाते हैं। फिर परिणाम भी भुगतना होता है और ऐसे लोग आम लोगों की नजरों को से भी जल्द उतर जाते हैं। लोकतंत्र में जनता सर्वेसर्वा है वह प्रतिनिधियों को चुनती है यह जनता की हैसियत है कि वह सरकार बनाती है। सरकार

किसी की बपौती नहीं होती हैं। सरकार और उसके सेवक, अधिकारी जनता के सेवादार होते हैं इसलिए जनता से शालिनता, व्यवहारिक होना जरूरी है ना की उन्हें छोटा समझकर उन्हें ताने देकर उनका मखौल उड़ाना, यह घमंडबाज की निशानी हैं, जनता की पूरी बात को गंभीरता से नहीं सुनकर, डराने, चमकाने का प्रसंग सा है। ऐसा लगता है ओहदे के जोर में

अव्यावहारिकता और निरंकुशता छायी हुई है। ऐसे लोगों से

जनता की पीड़ा बड़ने वाली ही है।

जनता का ओहदा सबसे ऊपर होता है, अफसर और पदधारी नेता जो सरकार में शामिल हैं जनता के सेवक हैं, जनता के हितचिंतक हैं, उनकी औकात बहुत बड़ी है और जनता में शामिल हर वर्ग, हर धर्म, हर समुदाय में कोई भेदभाव नहीं बल्कि सभी से समानता का व्यवहार करना चाहिए। सरकार, उसके महकमें के सूबेदार-ताबेदार, स्थानीय लोक प्रशासन

सभी को जनता की समस्याएं गंभीरता से सुनकर उनका उचित

निराकरण करना चाहिए। ना की डराने, चमकाने या मखौल बनाने के प्रयास करने चाहिए। औकात की बात ना करें, हो सकता है सामनेवाले की औकात पूछने वाले की औकात से भी

बड़ी हो। समाज में हर शख्स की अपनी इज्जत हैं। यही इज्जत

उसके चरित्र, आचरण, ओहदे और कर्म करने, शिक्षा हासिल करने, धनोपार्जन से उसके द्वारा कमाई जाती है। उस पर अव्यावहारिकता पूर्ण व्यवहार कर उससे बलपूर्वक उसकी औकात, हैसियत कम नहीं की जा सकती। यदि कोई ऐसा

प्रयास भी करता है तो वह खुद की इज्जत पर बट्टा लगाता है,

खुद की औकात गिराता है जो उसके लिए तो अहितकारी है ही

उसके ऊपर काबिज अन्य ओहदेदार शख्शों का भी मान-सम्मान घटाता है।

अपनी इज्जत आपके ही हाथों में है चाहे स्थिर रखो, चाहे बढ़ा लो घटा लो। हर व्यक्ति अन्न ही खाता है और सोचने-समझने की शक्ति भी स्वयं रखता हैं। हर व्यक्ति जानता है कि उसकी औकात क्या है। आपको इसे जानने - बताने की जरूरत नहीं।

यह गलतफहमी पालना आपके लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है इसलिए  आम आदमी को औकात बताना भूल जाइए। अपनी इज्जत औरों से करवाना है तो जनता की भावनाओं और इज्जत का सम्मान तो हर अधिकारी व राजनेता को करना ही चाहिए। इसलिए गरीब, मजदूर व उनके प्रतिनिधियों की भी औकात बड़ी होती है, उनसे मत पूछिए, भारी पड़ेगी।


                              - मदन वर्मा " माणिक "

                                इंदौर, मध्यप्रदेश