अपनी-अपनी जगहें..

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

कह रहे हैं लोग 

बढ़ रही हैं जरूरतें,, खत्म हो रही हैं 'जगहें'

शायद इसीलिए,,समेट रहा है हर कोई 

जरूरतों से ज्यादा जगह !!

जगहों की भी अपनी जरूरतें हैं,,

अपनी ही कुछ भावनाएं हैं ,

कहो, कैसे छोड़ें अपना स्वामित्व !!

वर्चस्व की इस लड़ाई में

दोनों की ही अपनी दलीलें हैं ,

एक समेटना चाहता है,,

जबकि एक को चाहिए अपना पूरा का पूरा विस्तार !!

ये बात अलग है कि दिनों-दिन

जरूरतें बढ़ा रहीं हैं अपनी-अपनी जगहें !!

नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश