इसीलिए पतंग कहलाती...!

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


उठ रही आकाश की ओर

पतंग साथ लेकर हमारी डोर

कभी चली इधर कभी उधर

कभी नीचे कभी ऊपर,

हवाओं के बल पानी में बहती

नाव सी सरस, अपने ही रंग में

कभी नाचती, कभी अपनी

सुंदरता पर इठलाती, कभी दूसरी

पतंग पर बाज की तरह झपटती

पेंच लड़ाती, झगड़ती मेरे इलाके

में क्यों उड़ रही तू, उसे काटकर

सबक सिखाती, फिर सिर ऊंचा

कर आसमान में और ऊंचाई पर

दूर चली जाती, अपनी जीत की

खुशियां मनाती, ऐसी इतराती

इसीलिए पतंग कहलाती ।।


जयश्री वर्मा (सेनि. शिक्षिका)

इंदौर, मध्यप्रदेश

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