रामायण- त्याग का सार

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

रामायण पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

रामायण पढ़ने से या पूजा पाठ करने से कोई चमत्कार होने वाला नहीं है। यदि आपकी नियति गंदी है तो आपको पूजा पाठ का कोई भी फल नहीं मिलेगा।

भगवान राम का पाठ करने वाले को भगवान के जीवन से सीख लेनी चाहिए। जिस भगवान राम ने मनुष्य जीवन में इतना कष्ट उठाया तो उनकी पूजा करने वाले हम मनुष्य कष्ट उठाकर पूजा पाठ करके अपना जीवन यापन क्यों नहीं कर सकते।

आखिर हम तुच्छ सुख को ही अपना आधार क्यों बना लेते हैं।

बहुत तेजी से सनातन धर्म की तरफ लोगों को महत्व देते  हुए देखा जा रहा है। हर्षोल्लास में हर सनातनी भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा की प्रतीक्षा में एक-एक पल काट रहा है। हम सब भगवान राम की पूजा भी करते हैं। ऐसे लोग भी हैं जो भगवान राम के अनुयाई हैं। भगवान राम की प्रार्थना करना या उन्हें मनाना ही केवल मात्र हमारा धर्म नहीं है। सच्चा राम भक्त वही है जो राम भगवान के जीवन से कुछ प्रेरणा लेता हो। एक राम भगवान थे जिन्होंने अपने पिता की आज्ञा पालन के लिए अपना राज सुख छोड़ दिया और वनवास चले गए।

एक आज का युग है, रामायण पढ़ने वाले लोग अपने माता-पिता का मकान छीनना ही अपनी पूजा समझते हैं। एक हमारे भगवान श्री राम थे जिन्होंने अपना सब कुछ अपने भाई को दे दिया था। और आज का भाई अपने भाई का सब कुछ हड़पने में लगा हुआ है। एक भगवान राम के भाई श्री भरत जी थे ।

जिन्होंने अपनी माता कहते के विरुद्ध जाकर भगवान राम का हक भगवान राम को वापस किया और एक आज के भाई हैं जो अपने भाई का मकान और पैसा हड़पने के लिए किसी हद तक जा सकते हैं और फिर रामायण पढ़ते हैं, पूजा भी करते हैं, शायद इन्हें शास्त्रों का ज्ञान नहीं है, कुछ डिग्री लेने से आप पढ़े-लिखे नहीं हो जाते अगर आपको सही समझ नहीं है तो। असली पूजा तो ईमानदारी से अपना जीवन काटने में है। भगवान श्री राम की तरह त्याग करने में है।

 जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए।

 राम सीता राम हर समय गुनगुनाते रहिए

शादीशुदा बेटी का असली घर कौन सा है! आजकल बड़ी अजीबोगरीब नई प्रथा चल गई है माता-पिता अपनी बेटियों की शादी तो कर देते हैं पर उसे पूर्णता विदा नहीं करते हैं! बेटी अपने माता-पिता का और अपने भाइयों का डर अपने पति और सास ससुर पर डालती है। कैसा प्रेम का रिश्ता है जिसमें एक औरत अपने वजूद को ही भूल जाती है। शादीशुदा स्त्री का असली घर उसका ससुराल उसके पति का घर होता है। अगर पति नमक रोटी भी खाए तो एक पढ़ी-लिखी समझदार पत्नी को पति के घर में नमक रोटी खाकर ही गुजारा करना चाहिए और खुश रहना चाहिए। शादी के बाद मायके का पकवान भी स्वादिष्ट नहीं होता है। 

कुछ लोगों का कहना है कि हम अपना मायका कैसे छोड़ दे। अगर आप अपना मायका नहीं छोड़ सकती तो अपने पति का घर क्यों छुड़वा देती हैं। अपने पति की खुशियों का ध्यान क्यों नहीं रखती हैं। पति आपके दर से या इस रिश्ते को कायम रखने के लिए आपके सामने बोलने में ना सक्षम हो पर वह भी अपने माता-पिता को अपने भाई बहनों को मिलना चाहता होगा शायद रहना चाहता होगा। स्वार्थी स्त्रियां पूजा पाठ तो बहुत करती हैं लेकिन उसके निष्कर्ष को नहीं समझ पाती हैं। 

विवाह के पश्चात माता सीता भगवान श्री राम के साथ चौदह साल के लिए वनवास में रही और आज की स्त्री- कहा जाए आज की पढ़ी-लिखी स्त्री चौदह दिन भी पति के द्वारा दिए हुए कष्ट को सहन नहीं कर सकती। भगवान राम के राज्याभिषेक के द्वारा बाद धोबी के द्वारा कहे हुए शब्द को ध्यान में रखते हुए माता सीता का त्याग तो हुआ पर यहां माता सीता अपने मायके में जाकर नहीं रहने लग गई। माता सीता ने अपने दोनों पुत्रों को वनवास में जन्म दिया और वनवासी की भांति अपना जीवन यापन करती रहे और अपने पुत्रों को पालती रही।

आध्यात्मिक पत्निया माता सीता की तरह होती है । विवाह पश्चात स्त्रियों को अपने पति के चरणों में ही रहना चाहिए। और पति को भी अपनी पत्नी के मायके रोज नहीं जाना चाहिए। अपने माता-पिता से तो लड़के बात करते नहीं है। जन्म देने वाले माता-पिता से तो लड़कों को सौ  शिकायत होती हैं पर पत्नी के माता-पिता को सर पर चढ़कर रखते हैं उनकी बहुत सेवा करते हैं अच्छी बात है ।

अगर आप सास ससुर की सेवा करते हैं तो बहुत अच्छी बात है पर वही जन्म देने वाले बूढ़े माता-पिता को कैसे भूल जाते हैं। पत्नी की हर जायज नाजायज बातों को मनाना प्रेम नहीं कहलाता है बल्कि पति की कमजोरी को दर्शाता है। जो पति अपनी पत्नी का निर्वाह करने में सक्षम नहीं होता है वही अपनी पत्नी के घर से जाकर के पैसे लेकर आता है।

बड़े शर्म की बातें बड़ी-बड़ी पूजा पाठ करने वाले लोग इतनी छोटी सी बात को नहीं समझ पा रहे हैं की असली सुख है क्या।

आखिर भगवान को क्या मुंह दिखाकर मंदिर के द्वार पर प्रवेश करोगे।

पूजा तो हम भगवान राम और सीता की करते हैं और त्याग तो रावण के जैसा भी नहीं करते।

लड़की के माता-पिता को भी अपनी शादीशुदा बेटियों को समझना चाहिए कि वह अपने ससुराल में रहे और अपने पति और अपने बच्चों को देखें। रोज-रोज उठकर मायके ना जाए अपनी भाभी को भी जीने दे।

वह माता-पिता बराबर के दोषी हैं जो अपनी बेटियों को गलत शिक्षा देते हैं। भगवान राम की प्रार्थना पूजा करने के साथ-साथ उनके आदर्श को भी समझने की जरूरत है


लेखिका-ऊषा शुक्ला

11 एवेन्यू

गौर सिटी 2

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