दान

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

रघु गर्मी की छुट्टियों में अक्सर अपनी नानी के घर जाया करता था । एक बार की बात है नानी रघु को साथ लेकर पास के सब्जी बाजार से सब्जी लेने गई ।  नानी सब्जी खरीद रही थी, पर ये क्या नानी ने कुछ सब्जियों को अलग एक थैले में सब्जी वाले से बंधवाया । रघु ये सब बड़े आश्चर्य से देख रहा था। नानी ने अलग सब्जियों का पैकेट क्यों और किसके लिए बनवाया है ? ऐसे कई तरह के प्रशन रघु के दिमाग में दौड़ रहे थे ----- 

   सब्जी वाले को रुपए देकर नानी रघु को साथ लेकर घर के पास वाली छोटी गली में गई । वहां एक बूढी दादी को नानी ने दुसरे सब्जी वाला थैला थमा दिया और उनसे रुपए भी नहीं लिए थे । फिर वे लोग घर आ गए ।  

   थोड़ी देर बाद फुर्सत के क्षणों में जब नानी कमरे में आराम कर रही थी तब रघु ने नानी से पूछा , " नानी आपने दूसरा सब्जी वाला थैला उन बूढी दादी को क्यों दिया ? " नानी ने बड़े प्यार से रघु को अपने पास बैठाया और सिर पर हाथ फेरते हुए कहा , " बेटा हर व्यक्ति को अपने सामर्थ्य व शक्ति के अनुसार कुछ दान अवश्य करना चाहिए और सबसे बड़ी बात यह दान गुप्त होना चाहिए । " नानी ने आगे कहा , " रघु दान करने से व्यक्ति के अंदर सात्विक भाव जागृत होते हैं उसको बहुत सारा आशीर्वाद और ढेरों दुआएं मिलती है, यही दुआएं और आशीर्वाद उसके जीवन की रक्षा करती हैं और उसे भाग्यशाली भी बनाती हैं । " 

   हमारे शास्त्रों में भी दान की महिमा अनेक को रूपो में वर्णित है । " दानं ही सर्वेव्यसनानि हन्ति ।"   अर्थात् दान से ही सभी कष्ट दूर होते हैं ।

  नानी बड़े प्यार से आगे कहती है रघु हमें किसी न किसी रूप में अपने जीवन में अपने आय का कुछ प्रतिशत हिस्सा गुप्त रूप से दान कर अपना सामाजिक सहयोग अवश्य करना चाहिए और सबसे मुख्य बात है रघु दान हर किसी को नहीं केवल सुयोग्य पात्र को ही देना चाहिए ,चाहे फिर वह अन्न दान , वस्त्र दान,या फिर कोई और दान ।

रघु के मन में नानी के यह दान वाली बात उतर गई थी । उसके सारे प्रश्नों के उत्तर मिल गए थे । रघु ने अब दान को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया था । आज रघु  कई बड़ी-बड़ी कंपनियों का मालिक है व कई सारे सामाजिक कार्य कारणी संस्थाओं का अध्यक्ष भी है। " नानी की सीखाई गई शिक्षा और संस्कारों को वह खुद भी निभा रहा है और उनको आगे भी बढ़ा रहा है। "

-  मोनिका डागा  "आनंद" , चेन्नई