युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
हिंदी भारत जन आत्मा, बनी विश्व जन की गरिमा।
अध्यात्म ज्ञान सखित्व से, बनती जग प्राण अरुणिमा।।
रचना-बोध,नवाचारी, भव मैत्री इक गुर बाँधे।
युरेशिय घरों की लक्ष्मी, दे सिख सुभाव के काँधे ।।
भरत वंश फैले जग में, देशात्मा हो,विश्वात्मा।
सोहम् से ऊपर उठती, कोमल उर में शुद्धात्मा।।
संरा की संस्था गूँजे, हिंदी सम्मानित होती।
मां के आँचल तल रहके, छन्द रसिक नैन सँजोती ।।
आत्म सजे सब मेरे ही, सर्वोदय बोल सुरभिता।
जन भावन हिंदी मापे, एकल मन से हो ललिता।
सहित-भावी मौलिक रचना, देती रोजी जन इषिता।
विज्ञान,व्यापार शिक्षा, हो नव शिल्प में सु-गमिता।
विधि हिन्दी जग आदृत है, हृद उन्मुख होती सरला।
हिंदी वैश्विक मन सजती , नव मानव रच दे सबला।।
तरुणिम छवि जन-प्रिय लगती, मानक-रुप संश्रुत होते।
सौमनस्य जाग्रत रखती, उपमानक अहुत लुभोते ।।
जग प्राणी जिस भुवि विहरें, मुद्रण,टँकण आशु रचना।
सुभग अनुवाद को पढ़ के, हिन्दीतर चित को अँकना।।
मीरा भारती।