मोहब्बत नहीं

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

मोहब्बत नहीं फ़क़त लगाव है तुम्हें,

मोहब्बत जो होता तो रह न पाते मेरे बिन।

प्यार नहीं बस इक आदत है मेरी,

प्यार होता तो जुदाई सह न पाते इक भी दिन।

तुम्हारे दिल में इक दिमाग भी है,

दिल होता तो समझ लेते मुझको कहे बिन।

न वक़्त देते हो ना ही खुद पर देते अधिकार हो,

तोड़ते हो हर ख़्वाब हमारे हम जुड़े रहते ढहे बिन।

गुमनाम इस रिश्ते का बस इक नाम चाहती हूँ,

तुमसे हो शुरू और ख़त्म वो सुबह-शाम चाहती हूँ।

हसरत है बस इतनी सी पर जाने क्यों तुम घबराते हो?

हाँ,प्यार नहीं कुछ और है तुम्हें तभी अपना कहने से डर जाते हो।

डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ )