यूनिकोड विश्वेश्वरैया जी के बाद महानतम भारतीय अभियंता डॉ. अयोध्यानाथ खोसला

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

नदियों का पानी नहर के अंदर मोड़ने के लिए वियर या बैराज बनाए जाते हैं। जैसे मेढ़ के कारण खेत में पानी की ऊँचाई आसपास के स्थान से उपर हो जाती है वैसे ही बैराज या वियर से नदी का पानी उपर उठ जाता है। उपर उठने के कारण ही पानी नहर में घुस पाता है। 

विदित हो कि नदी स्थानीय रूप से सबसे गहरे स्थान पर बहती है और नहर को अभियांत्रिकी संबंधी विभिन्न कारणों से सबसे ऊँचे स्थान पर बनाया जाता है। इस कारण नदी का पानी चाहे मात्रा में कितना ही अधिक क्यों न हो वह सामान्यतया खुद नहर में नहीं जा पाता। बैराज या वियर के पीछे स्थित उठे पानी में स्थैतिक ऊर्जा बढ़ जाती है। 

जोकि संरचना को बहा ले जाने, पलट देने और इसके नीचे से अर्थात नींव की मिट्टी के अंदर जल धारा बनाने का प्रयास कराती है। मिट्टी के अंदर बहने वाली जल धारा अपने साथ मिट्टी के कणों को भी घोल कर ले जाती है जिससे नींव में कैविटी अर्थात पोलापन पैदा होने लगता है जिससे संरचना के नीचे धंसने और विफल होने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है। 

कुशल इंजीनियर इन सब बातों का ध्यान रखकर संरचना की माप और नींव की गहराई तय करता है। डिजाइन तैयार करने वाले इंजीनियर के लिए सबसे अधिक परेशानी नींव के अंदर से पानी के बहने की प्रवृत्ति जानना और उसका पक्का ईलाज करना होती है।

सन उन्नीस सौ पच्चीस तक वैज्ञानिक ब्लिघ के सिद्धांत द्वारा तय किया जाता था कि वियर या बैराज की नींव में पानी किस स्थान से होकर और कितनी ताकत वेगध्प्रेसर से बहेगा। ब्लिघ  की मान्यता थी कि पानी वियर या बैराज की संरचना की आन्तरिक सतह (जिससे जमीन छूती है) से चिपककर और उसके नजदीकी क्षेत्र से बहता है। 

ब्लिघ के सिद्धान्त पर बनाए गए अनेकानेक वियर और बैराज सफल रहे परन्तु कई संरचनाएँ विफल होने लगीं। शुरूआत में अभियंताओ और वैज्ञानिकों को इसका कारण समझ नहीं आया। इसी तरह उन्नीस सौ छब्बीस -सत्ताईस में ब्लिघ के सिद्धान्त के आधार पर अपर चेनाब कैनाल सायफन की ऊपरी संरचना उसकी नींव में पानी के बहाव के कारण गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होने लगी तो इसकी जांच के लिए डॉ. अजुध्यानाथ खोसला को लगाया गया। 

डॉ. खोसला ने गहराई से अध्ययन किया और बताया कि इस सायफन की नींव में पानी उन स्थानों से तथा उस दबाब से नहीं बहता जैसा ब्लिघ  के सिद्धांत के आधार पर इसे बनाया गया है। डॉ. खोसला ने वियर या बैराज या डैम की नींव में पानी बहने के रास्तों और उनमें स्थान-स्थान पर पानी के प्रेसर की मात्रा ज्ञात करने के नए सिद्धांत की खोज की जिसे खोसलाज थेयरी एंड कन्सैप्ट ऑफ फ्लो नेट्स के नाम से जाना जाता है। 

अपने सिद्धान्त को डॉ. खोसला ने उन्नीस सौ छत्तीस में डिजाइन ऑफ वियर इन इमपरवियस सॉयल (अपारगम्य नींव पर वियर का डिजाइन) नाम से प्रकाशित कराया। यह सिद्धान्त दुनिया भर में बहुत प्रसिद्ध हुआ। रेतीली मिट्टी की तली वाली नदियों में जब डॉ. खोसला के सिद्धांतों से वियर या बैराज बनाए गए तो ब्लिघ के सिद्धांतों से बनी संरचना की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित सिद्ध हुए। 

ठोस पत्थरध्मिट्टी के धरातल पर ब्लिघ के सिद्धान्त से बने वियर और बैराज भी सफलतापूर्वक काम करते हैं परन्तु रेत या ढीली कम ठोस मिट्टी में डॉ. अजुध्यानाथ खोसला के सिद्धान्त से बनी संरचाएँ ही सफल सिद्ध हुईं। धीरे-धीरे दुनिया भर में इनका सिद्धान्त पढ़ाया जाने लगा। इसी सिद्धांत से गहरी कट ऑफ पाईलस का प्रयोग वियर या बैराज की नींव में वृहद रूप में शुरु हुआ। 

जिससे संरचना के नीचे नींव में बह रहे पानी का प्रेसर ताकत कम हो जाती है और वह अपने साथ मिट्टी के कण बहाकर नहीं ले जा पाता और इस प्रक्रिया से बनने वाला पोलापन भी नहीं पैदा होता। बांधो का डिजाइन करते समय उनमें एकत्र हो सकने वाले वर्षा जल की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए भी डॉ. खोसला द्वारा खोजा गया सूत्र प्रयोग में लाया जाता है। 

उनके इस सूत्र को खोसलाज फॉर्मूला कनैक्टिंग रैन फॉल एंड यील्ड के नाम से जाना जाता है। डॉ. अजुध्यानाथ खोसला उन गिने-चुने भारतीय अभियन्ता-वैज्ञानिकों में से एक हैं जिनके खोजे गए सिद्धांतों और सूत्रों को अनेक देशों में पढ़ाया और प्रयोग में लाया जाता है। खोसलाज थेयरी एंड कन्सैप्ट ऑफ फ्लो नेट्स के सूत्रों को समझने और प्रयोग करने के लिए स्नातक स्तर के उच्च गणित की गहन समझ होना अनिवार्यतः आवश्यक है। तुलनात्मक रूप से ब्लिघ का सिद्धांत डॉ. खोसला के सूत्रों की तुलना में गणित के सरल समीकरणों पर आधारित है।

 डॉ. अजुध्यानाथ खोसला अपने समय भारत के विख्यात लोगों में से एक थे। इनसे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें और विशिष्ट उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं- जन्म-ग्यारह  दिसम्बर अट्ठारह सौ बयानवे जालंधर (पंजाब), मृत्यु- उन्नीस सौ चैरासी। आई आई टी रूड़कीध्रूड़की यूनिवर्सिटी के कुलपति बनाए गए। ब्लिघ के सिद्धान्त को अवक्रमित और उच्चीकृत करके खोसला सिद्धान्त का प्रतिपादित किया।

 भाखड़ा बांध  के निर्माण की शुरूआत इनकी संस्तुति पर ही हुई। राज्य सभा सदस्य बने। उड़ीसा के राज्यपाल बनाए गए। पद्म पुरस्कार से सम्मानित। भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष। अनेक तकनीकी समितियों में नामित। विश्वेश्वरैया जी के बाद महानतम अभियंताओं में से एक। उत्कृष्ट कार्यों के लिए इन्हें कैनेडी गोल्ड मैडल भी दिया गया।