युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
जिसने भरा हृदय में मेरे मधुर गीत,
स्वर्ण सपनों का चितेरा मनमीत,
प्रेम ही तो है जिसने दिया उर स्पंदन,
तृप्ति नभ धरा का जिसमें संचित।
सूने निलय को मेरे किया सुरभित,
कभी दृगों से बहता है अपरिचित,
अनुसरण उच्छवास करता प्रतिपल,
लज्जा से अधर मेरे होते कंपित।
पारावार में भी उसका साथ सदा अकम्पित,
तिमिर मन का मेरे ओज है पुलकित,
पाकर उसे,पा लिया संसार मैंने,
मेरे जीवन का वो है आधार गर्वित।
मेरी बगिया को जिसने किया पल्लवित,
प्रेम ही अटल शाश्वत रहे सदा कुसुमित,
क्या खोना क्या पाना इसमें?
इक दूजे संग रहे सदा हर्षित।
डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ)