निगाहें अब तलक ढूंढती है

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


दिल तोड़ने वाले का हसर ढूंढती है,

निगाहें उन्हें अब तलक ढूंढती है।


वो बन बैठा ख़ुदा किसी और का,

निगाहें उन्हें अब तलक पूजती है।


मिले नहीं वो मुकद्दर की बात है,

साँसें उनमें अब तलक डूबती है।


नज़रों की हिमाक़त तो देखो,

अक्स तेरा अब तलक देखती है।

         

फिर न आयेगा शब-ए-वस्ल कभी,

सोच में सुबह अब तलक गुज़रती है।


मरासिम बढ़ाया ही क्यों बेवफा ने,

दर्द बन बात ये अब तलक चुभती है।


न दिन का चैन न करार रातों का,

आग जाने कैसी ये अब तलक लगी है।


रूह में वो इस कदर हैं 'संवेदना'

मिलन की अब तलक खलबली है।


डॉ. रीमा सिन्हा 'संवेदना'

 लखनऊ