“राजनीतिक मूल्यों में गिरावट हुई है।”

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

“यह क्या! इतनी बड़ी बात कह दी तुमने? राजनीति में या कहीं और मूल्य कभी भी नहीं गिरते। जिसका मूल्य या सिद्धान्त  उसी से चिपका और सुरक्षित रहता है। समय, मान्यताएं और परिस्थितियों के अनुसार मौजूद ढोने वाले मतलब सिद्धांतों का भार वहन करने वालों का मूल्य बदलता रहता है, बस! लेकिन अचानक यह सब क्यों याद आया?”

“पुराने जमाने में रेल दुर्घटना में लोग मर गए तो मंत्री पद को त्यागने वाले महापुरुष रहा करते थे। यही बात अब आप कहो तो क्या जवाब मिलेगा जानते हो? इस तरह इस्तीफे देते फिरेंगे तो कोई राजनीतिक नेता देश में बचेगा ही नहीं कहते हुए व्यंग्य करेंगे। इस तरह अगर आज के जमाने में किसी मंत्री का इस्तीफा लेना है, तो कितनी बड़ी दुर्घटना होनी चाहिए, कितने जन प्राण गंवाने होंगे  कल्पना करो।”

“तो कहने का मतलब समय और परिस्थितियों के हिसाब से मूल्य या सिद्धांत बदल गए?”

“मूल्य या सिद्धांत जो हैं, वे अचल हैं, स्थिर  हैं, जबकि उसे ढोने वाला पदार्थ चल है चलायमान है। समय बदले, प्रदेश बदले, तब भी सिद्धांत या मूल्य वही रहता है। बस उसे देखने के नजरिए और  उसे अपनाने के तरीके में अंतर होता है। 

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ा लिखा अफगानिस्तान का पूर्व मंत्री समय की मार से जर्मनी में साइकिल पर खाना पहुंचाने के काम में लगा हुआ है और पूरी शांति से जी रहा है। हमारे अपने देश में इसकी कल्पना भी क्या की जा सकती है? यहां एक सरपंच भी अपने जीवन काल में ऐसा नहीं करेगा लेकिन बुरे दिनों से गिरे अफगान के मंत्री की हालत ऐसी हो गई है। समय, मान और परिस्थितियों में अंतर का मतलब यही है।”

“लेकिन हम क्यों चाहे कि हमारे नेताओं को भी वैसे ही दिन देखने पडें।” 

“हमारे नेता जब जनता के दुख दर्द को देखते हैं तब भी दो सहानुभूति की बातें कहने में ही थक जाते होंगे। हाल ही में कर्नाटक के मैसूर में जो बलात्कार की घटना हुई है, उस समय कर्नाटक के मंत्रियों की बातों का वजन किसी से छिपा नहीं है। वहां के गृहमंत्री ने बलात्कार की घटना को लेकर विपक्ष उनका “रेप” करने की कोशिश कर रहा है कहते हुए अपनी वाचालता प्रगट की। दूसरे मंत्री ने दार्शनिक बनने की चेष्टा में कहा ‘बलात्कार पर हम कुछ नहीं कर सकते।’”

“क्यों ऐसा सोचा जाए कि हालातों की जानकारी के अभाव में, किसी दबाव में, हल्ले गुल्ले वाले सत्र में उस तरह बोल गए होंगे।”

“सच कहते हो! हमारे नेताओं में ऐसी बातों के प्रति संवेदनशीलता कहां होती है? उन्हें तो यही सब पता है कि कितनी सरकारी जमीन कहां-कहां खाली पड़ी है? किस सड़क को खोदने से कितना मिलेगा? कौन सी प्रोजेक्ट हथियाने से पैसों की बारिश होगी? किस ठेके में सब वारे न्यारे किए जा सकेंगे? यही सब उनके ज्ञान भंडार के मोती हैं।

 इतने ज्ञानी हैं तभी तो हर समस्या का समाधान वह चुटकियों में बता देते हैं। ‘छोटे कपड़ों की वजह से बलात्कार हो रहे हैं’, ‘रात के समय लड़कियों को बाहर क्या काम है’ जैसे सिद्धांतों को प्रतिपादित करते हैं और इसे ही नीति और रीति- रिवाज की संज्ञा देते हैं। इसलिए राजनीति में मूल्य जैसे ब्रह्मपदार्थ की खोज करने का आप कष्ट न उठाएं।  कोरोना कहां से आया, यही खोज करने के लिए काफी कष्ट झेल  रहे लोग, मूल्यों को खोजने कहां जाएंगे? क्या करेंगे?”

डॉ0 टी0 महादेव राव, विशाखापटनम 

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