खुशी

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


मैं  खोजती रही उसे,

नये  नये  वस्त्रों में, 

चमचमाते गहनों  में, 

बड़ी बड़ी गाड़ियों में, 

कभी सैर - सपाटे  में, 

कभी महलों में, 

कभी पहाड़ो पर 

घाटियों और वादियों में, 

धन में, धर्म में, 

परिवार में, अपरिचितों में 

सरिताओं  के बहते जल में 

प्रकृति के  सानिध्य में, 

तीर्थों  में, 

मंदिरों 

देश में, 

विदेश में, 

एकांत में, 

भीड़ में, 

खामोशी में, 

शोर में, 

अतीत में, 

भविष्य में  ,

धरा के कण- कण में, 

पर वो मुझे नही मिली।

     क्योंकि. .

मेरी खोज खुशी तो,

मेरे अंदर ही  छुपी थी ।


गरिमा राकेश 'गर्विता' 

कोटा,राजस्थान