ये जिंदगी है

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

ये जिंदगी है चार दिन की अब इसे गुलजार कर ले,

चाहे  हो  संघर्ष  कितने फिर भी  यारा प्यार कर ले,

सुख हो, दुख हो या कमी हो फिर भी मुख मुस्कान धर ले,

जो दिया है राम जी ने उसको सहृद स्वीकार कर लें।

मनहर घनाक्षरी

माली सींच देता प्यार बागों में आए बहार,

मदमस्त  गाते  अलि   थुन  मन भाती  हैं।

सतरंगी  तितलियां  मगन  हुई  हैं  मस्त,

कलियां चिटक खिल मन को लुभाती हैं।

पक्षियों ने डाला डेरा झूम रही डाल डाल,

शीतल  पवन  बहे  तन  को  सुहाती  हैं।

सूरज  सलोना  उगे  किरण  प्रभात  जगे,

अलका  धरा  पे  झूम  मृदु  गीत गाती है।


डॉ0 अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'

लखनऊ उत्तर प्रदेश।