अटैक

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

जिंदगी में कब,कहां,कैसे हो जाये

अचानक से अटैक कोई नहीं जानता,

कभी हृदय पर,

कभी मष्तिष्क पर,

कभी नसों में,

उम्मीदों पर,

आशाओं पर,

इच्छाओं पर,

भावनाओं पर,

हुआ है कई बार,

बार बार लगातार,

और हम सहते हुए आये हैं,

सह रहे हैं,

और आगे भी सहते रहेंगे,

हमारी सहनशीलता की

कोई सीमा नहीं है शायद,

तभी तो हजारों सालों तक

और आज भी

सह रहे हैं झटके पे झटके,

हमारे मन मष्तिष्क पर

आज भी किया जा रहा है तांडव,

इग्लू लोगों की तरह

बर्फबारी जैसे स्थिति कह

प्रकृति या नियति मान लिये हैं,

मगर ये शिक्षा

झकझोर रहा है और

कह रहा है जिसे नियति कहा जा रहा

दरअसल वो गुलामी है,

मानसिक गुलामी,

जिसे तोड़ने को आतुर है

आज की पीढ़ी,

हो चुके हैं प्रतिबद्ध प्रतिघात के लिए।

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग