हम भी तुम्हारे बाप हैं

साहब टेढ़े लोगों के लिए सीधे-सादे कपड़े पहनकर जायेंगे तो वे हमारा कचूमर बना देंगे। वैसे भी हमें ऐसे कपड़ों में जाने की क्या जरूरत है? यूनिफार्म में चलते हैं। लोगों में रौब बना रहेगा। कांस्टेबल ने कहा। यही तो मुश्किल है। यह यूनिफार्म डराने के लिए इतना बदनाम हो चुका है कि भरोसे का परिंदा इसके आसपास फटकने से भी डरता है। 

चोर-उचक्के इतने अडवांस हो गए हैं कि उन्हीं के चलते बड़ी-बड़ी कंपनियाँ फेस डिटेक्टर, थंबप्रिंट एनेबल तकनीकों से लैस डिवाइस बनाने लगे हैं। अब ऐसे में उन्हें पकड़ना रिश्वत खाने जितना आसान नहीं है। इसीलिए सरकार ने आदेश दिया है कि सभी चोर-उचक्कों, अपराधियों, गुंडे मवालियों के घरों की जियो टैगिंग करें। उन्हें भनक न लगे इसके सादे कपड़े में जाना होगा। सब इंस्पेक्टर ने कहा।

लगता है सरकार का दिमाग खराब हो गया है। भला इन अपराधियों का कोई घर होता है, जो इन्हें जियो टैगिंग कर गूगल मैप्स की सहायता से पकड़ लेंगे? वे अपराधी हैं! अपराधी! उनके यहाँ हमारी तरह भर्ती में देरी नहीं होती। हमारे यहाँ तो चुनावों से ठीक पहले भर्ती की जाती है, जिससे बेरोजगारों में यह विश्वास बना रहे कि ऊँट के मुँह में जीरा गलत मुहावरा नहीं है। 

उनका नेटवर्क जेट स्पीड की तरह काम करता है। और एक हम हैं जो नेटवर्क की स्पीड तो दूर अभी भी बाबा आदम के जमाने के तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। हम जब तक सोचते हैं, वे तब तक करके दिखला देते हैं। हमारी कथनी बोलती है और उनकी करनी। विधानसभा में हमारे नाम पर लोखो-करोड़ों का बजट पारित कर दिया जाता है।

 जमीन तक पहुँचते-पहुँचते और नेताओं के पेट से होते हुए वही बजट शून्य बनकर हमें पराजित करने के लिए बड़ा सा ठेंगा दिखाने हमारे सामने खड़ा हो जाता है। यहाँ तो हर भर्ती संवैधानिक नियमों का हवाला देते हुए आरक्षण के आधार पर किया जाता है। उनके यहाँ भर्ती केवल काबिलियत के आधार पर होती है। यही कारण है कि आए दिन अनगिनत चोर-उचक्के हमारी आँखों में धूल झोंककर नौ दो ग्यारह हो जाते हैं। अब आप ही बताइए कि ऐसे में जियो टैगिंग करने का क्या फायदा होगा? पिछले कई वर्षों से प्रमोशन की आस लगाए बैठे निराशावादी कांस्टेबल ने कहा।

इतना भी निराश होने की जरूरत नहीं है। हो सकता है कि जियो टैगिंग करने के बाद हालात बदल सकते हैं। पहले से ज्यादा अपराधियों को पकड़ने में सुविधा हो सकती है। इतना कहते हुए सब इंस्पेक्टर इलाके के सबसे बड़े गुंडे के घर पहुँचा। खुद को स्वास्थ्य विभाग का कर्मचारी बताकर घर में बैठने के बारे में सोच ही रहे थे कि गुंडे ने कहा – नमस्ते सब इंस्पेक्टर साहब! आपका नाम रामलाल, उम्र चौवालीस साल, रंग सांवला, कद 6 फुट 3 इंच, अब तक चार बार ट्रांसफर हो चुका है और यहाँ जियो टैगिंग करने के लिए आए हैं।

सब इंस्पेक्टर का मुँह खुला का खुला रह गया। वह कुछ पूछता कि गुंडा बोल उठा – आपने जैसे ही घर की घंटी बजाई, वहाँ लगा फेस डिटेक्टर विथ एडवांस टेक्नॉलॉजी ने आपका सारा चिट्ठा मुझे बता दिया। जहाँ तक जियो टैगिंग का सवाल है, तो आपको बता दूँ कि टैग उन्हें किया जाता है जो एक जगह टिकते हैं। हम तो आँऱखों में खटकते हैं। इसीलिए भटकते हैं। 

वैसे हमने सभी पुलिस थानों, चौराहों पर लगे सिग्नलों और सीसीटीवी कैमरा लगे स्थलों की जियो टैगिंग कर ली है। हमें पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है। वह क्या है न कि हम चोर-उचक्कों में एकता कूट-कूट कर भरी होती है। एक ईमानदार दूसरे ईमानदार को बचाए न बचाए लेकिन एक बेईमान दूसरे बेईमान को जरूर बचा लेता है।         

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657