ख्वाबों का स्वेटर

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

साल बदल रहा नया साल आ रहा

होंगे जीवन मे बदलाव ये ख्याल आ रहा

क्या खत्म हो जायेगी मेरी समस्याएं या उलझ जाऊंगी मैं और भी ज्यादा उधड़े और उलझे हुए ऊँन की तरह, 

एक एक फंदा बुन रही हूँ मैं ख्वाबों का जैसे माँ बुनती थी स्वेटर सर्दियों मे

घटा बढ़ा लेती हूँ फंदों को जरूरतों के हिसाब से तो कभी जोड़ देती हूँ उसमें छोटी बड़ी ख्वाहिशें

जैसे माँ जोडती थी रंग बिरंगे ऊँन और बन जाता था रंगीन सा स्वेटर, 

वैसे ही चाहती हूँ बुनना अपनेपन और प्यार के गरमाहट से भरा मखमली सा स्वेटर

बस डरती हूँ छूट न जाए कोई फंदा और रह न जाए मेरे ख्वाबों का स्वेटर अधूरा..!! 

स्वरचित् और मौलिक

सरिता श्रीवास्तव 'सृजन'