युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
तत्वान्वेषी नहीं हैं मेरी कविताएं
दार्शनिक तो जरा भी नहीं ,
हस्तक्षेप भी नहीं करती तुम्हारी 'सोच' में ,
सीधी..सरल..
गढ़ती हैं अपनी ही सभ्यताएं ,
मनस..मन की.. बेचैन..
उलझी सी प्रश्नों में ,
तलाश लेती हैं व्याख्याएं
अपनी ही कही पंक्तियों में ,
सुनों ,
आश्रित नहीं हैं ..
पानी चाहे कितना भी गहरा हो
झलक ही आतीं हैं
आंसू बनकर ,
मुस्कराती है..
खिलखिलाती हैं.. बूंद सी
लेकिन रहती है व्यस्त
अपने ही बादलों में,,अपने ही आसमानों में !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश