जहाँ चाह वहाँ राह

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे मोहन सुख सुविधाओं से वंचित अपना जीवन यापन कर रहा था। मोहन का बचपन बहुत कष्टकारी बीता। तीन भाइयों में बड़ा होने के कारण मोहन को बहुत संघर्ष करना पड़ा और तो और माता-पिता के प्यार से भी वंचित रहा। माता-पिता के तो तीन लड़के थे पर वह सबसे ज्यादा स्नेह बीच के बेटे से करते थे और बड़े बेटे का सिर्फ इस्तेमाल ही करते थे। माता-पिता से बहुत दंडित हुआ, बहुत मार खाई, कभी पेट भर के भोजन तक नहीं मिला। फिर भी अपनी ही जुनून में,अपने ही सपनों में कुछ बनने की चाह में,मोहन ने हिम्मत नहीं हारी।

मोहन के माता-पिता ने मोहन को दसवीं कक्षा तक की पढाया जबकि उसके भाइयों को बहुत पढ़ाने की कोशिश करते रहे और बहुत जगह नौकरी करवाने की कोशिश करते रहे ,पर उनमें से एक बारहवीं  ही पढ़ पाया और दूसरा ग्रेजुएट ही हो पाया।  यहाँ मोहन ने हिम्मत नहीं हारी। इतना दूर्व्यवहार होने के बावजूद भी मोहन जी जान से अपने माता-पिता की सेवा करता रहा। 

और अपने छोटे भाइयों को पालता रहा। अपने पिता का घर बनवाने में एक मजदूर की भूमिका निभाते हुए मोहन ने दिन-रात एक कर दिया। कहा जाता है जिसके नियत अच्छी होती है उसका भगवान भी साथ देता है‌ ,तीनों भाइयों में मोहन की शादी एक शिक्षित और बहुत ही आधुनिक लड़की से हो गई। मोहन के डर से मोहन की पत्नी भी बहुत अत्याचार सहने के बावजूद भी अपने सास ससुर की बहुत सेवा करती थी। 

पर माता-पिता को अपने बड़े बेटे की खुशी बर्दाश्त ही नहीं हो रही थी। उन्होंने मोहन को मजबूर कर दिया कि वह अपने पत्नी और बच्चों को छोड़ दे। और मोहन ने अपनी खुशी त्याग कर अपने माता-पिता की खातिर अपनी पत्नी और अपने बच्चों का त्याग कर दिया। मोहन से माता-पिता ऐसा कोई काम नहीं था जो नहीं करवाते थे, जो बेटे करते हो । मोहन ने गटर भी साफ किया, परिवार के खातिर पूरे मोहल्ले से लड़ाई भी की। मोहन पर पुलिस के दो-तीन केस भी आ गए। पर फिर भी माता-पिता को तरस नहीं आई। अपने संस्कारों बेटे को तकलीफ़ देते रहे ।

एक दिन मोहन के माता-पिता मोहन की पत्नी को फिर से घर वापस ले आए क्योंकि उन्हें रोटी की परेशानी हो रही थी। मोहन की पत्नी तो आ गई पर अब वह बहुत नाराज थी। उसने मोहन के माता-पिता का एक अन्न भी अपने मुंह में नहीं डाला। सारा खाना बनाने के बाद जब सब खाना खाने बैठते थे तब मोहन की पत्नी सबको  झूठ कहती थी कि वह खाना नहीं खा सकती क्योंकि उसका उपवास है।

 मोहन के पिता  शायद समझ गये कि यह जानबूझकर खाना नहीं खा रही है। उन्होंने मोहन को अपना अलग खाना बनाने के लिए कहा । माता-पिता की खुशी के खातिर और अपनी पत्नी की सेहत को देखते हुए मोहन अलग खाना खाने के लिए तैयार हो गया। पर अभी भी वह सारा काम और अपनी कमाई का आधा हिस्सा अपने पिता को देता रहा। मोहन की जिंदगी बर्बाद करने की शायद माता-पिता ने ठान ही ली थी । 

उन्होंने मोहन को नौकरी छोड़ने के लिए बोला। जब मोहन उनके कहने से नौकरी छोड़कर घर में बैठ गया और पत्नी की कमाई पर आश्रित हो गया । मोहन के परिवार ने देखा की मोहन सब की खुशी के लिए किसी भी तरह झुकने को तैयार था तो उन्होंने मोहन को घर से ही निकाल दिया ।और अपने दूसरे बेटों की शादी अशिक्षित औरतों से करा दी। मोहन अब अपनी पत्नी और बच्चों के साथ फिर से ख़ुशी से रहने लग गया और यहां से शुरू हुआ इसका एक नया संघर्ष। अपने परिवार के लालन पालन के लिए मोहन ने पोस्टमैन का काम किया। ओवरनाइट एक्सप्रेस में घर-घर डाक पहुंचाने का काम किया। कई बार तो मजदूर  का भी काम किया। 

मोहन ने किसी काम को छोटा नहीं समझा, बस हर काम में मेहनत से  जुट गया और जो भी कमाता इसका एक हिस्सा अपने पिता के हाथ में रखता रहा ।फिर एक दिन चमत्कार हुआ । मेहनत रंग लाई और मोहन को एक छोटी सी फैक्ट्री में काम मिल गया। मोहन ने दिन रात मेहनत करके एक एक सीढ़ी चलना शुरू किया और डिप्लोमा किया और फिर बी टेक किया । ईश्वर मोहन को उसकी मेहनत की कीमत देता रहा। मोहन एक अच्छे पद पर आ गया। 

पर मोहन को अहंकार नहीं आया वह अभी भी अपने माता-पिता और भाइयों की सेवा करता रहा। हालांकि मोहन के नसीब में माता-पिता का प्यार नहीं था और भाई सिर्फ स्वार्थी थे और नफरत भावना रखते थे यही कारण रहा किसी ने भी मोहन की खोज खबर कभी नहीं ली। मोहन की जिंदगी में फिर एक नया चमत्कार हुआ मोहन को विदेश में बहुत अच्छे पैसों पर नौकरी मिले। मोहन ने बहुत मेहनत की और यहां से खत्म हुई मोहन के जिंदगी की सारी कठिनाइयां।

मोहन ने अपने दोनों बच्चों को बहुत अच्छे शिक्षा दी,बहुत अच्छे संस्कार दिए ।नतीजा  मोहन के दोनों बच्चे बहुत अच्छे पद पर नौकरी करने लगे। आज मोहन करोड़ों रुपए में खेल रहा है उसका परिवार आलीशान तरीके से अपना जीवन यापन कर रहा है। ऐसा लगता है कि किसी किसी के नसीब में सिर्फ दुख ही दुख होता है शायद ऐसा ही मोहन के साथ हुआ। 

विदेश से आने के बाद मोहन को शायद किसी की ऐसी नजर लग गई कि वह बीमार हो गया पर समय की नजाकत तो देखो सगे मां-बाप बेटे को देखने नहीं आए। लेकिन जिसका दिल अच्छा होता है उसके साथ भगवान होता है और यही हुआ मोहन के साथ। दो साल बाद मोहन फिर स्वस्थ हो गया। और अपना जीवन खुशी-खुशी निस्वार्थ भाव से ईश्वर की सेवा करते हुए काटने लगा। मोहन ने अपने जीवन में किसी का बुरा नहीं किया ना हीं किसी गरीब को सताया।

हर व्यक्ति को अपना जीवन  सच्चे रास्ते पर चलकर सुखमय  बिताना चाहिए इसलिए कहा जाता है जहां चाह वहाँ राह।


लेखिका -ऊषा शुक्ला

चमकनी घंटाघर

शाहजहांपुर यूपी