अल्फा मेल जैसा कुछ होता है क्या?

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

'एनिमल' फिल्म बाक्स आफिस पर सुपरहिट साबित हुई है और विवादास्पद भी उतनी ही हुई है। फिल्म में रणबीर कपूर अपनी अभिनय क्षमता को एक नई ऊंचाई तक ले जाने में सफल हुए हैं। हम यहां फिल्म का रिव्यू नहीं कर रहे हैं, पर फिल्म का जिस तरह प्रचार हुआ है, एक अल्फा मेल (अल्फा मैन) किस तरह अपने पिता की हत्या करवाने का षडयंत्र रच चुका है, ऐसा विलन जिस तरह कलेजा कंपा देने वाला बदला लेता है, उसकी यह कहानी है। फिल्म में रणबीर कपूर अपनी पत्नी रश्मिका मंदाना को एक से अधिक बार खुद अल्फा मैन है और अल्फा मैन होने के नाते अपनी पत्नी का आत्मसम्मान घायल हो, उसे ताना मारने के साथ थप्पड़ भी मारता है। 

पत्नी उसकी उपस्थिति में तड़पती है। उसे मासिक स्राव, गर्भ से ले कर बच्चे के जन्म देने तक कोख की साइज को ले कर ताना मारता है। देश की महिलाएं और समाज के रखवाले इसे महिला जगत का पाशविक शोषण और धिक्कार के साथ दुर्व्यवहार के रूप में हुआ निरूपण (Misogyny) मानते हैं और देश भर के सोशल मीडिया में फिल्म का बहिष्कार करने की अपील भी की गई है। फिर भी फिल्म रणबीर कपूर के उत्कृष्ट अभिनय और बाॅबी देओल ने जो उम्मीद जगाई है, उसकी वजह से बाक्स आफिस पर रुपए बनाने में सफल हुई है।

फिल्म के निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा पहले भी इस तरह की विवादास्पद फिल्म 'अर्जुन रेड्डी' और 'कबीर सिंह' बना चुके हैं। उन्होंने लगभग तमाम इंटरव्यू में एक बात पर जोर दिया है कि 'एनिमल' एक अल्फा मैन की कहानी है, जो 'Toxic masculinity" मिजाज वाला है। फिल्म में रणबीर कपूर अपनी प्रेमिका रश्मिका से कहता है कि जो पुरुष अल्फा नहीं बन सकता, वह लड़कियों को आकर्षित करने के लिए कवि बन जाता है और अपनी प्रेमिका के लिए आकाश से चांद-सितारे तोड़ लाने की बातें करता है।

 अब इस फिल्म के समाज पर आने वाले खतरे की बात करें तो अल्फा मैन की व्याख्या ही यहां आज की युवा पीढ़ी को गलत रास्ते पर ले जाने वाली है। समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों ने ही पुरुष जगत को अल्फा मैन, बीटा मैन, सिग्मा मैन और जेटा मैन के रूप में वर्गीकृत करते हैं। इसे एक मिथक मानते हैं। इस तरह का वर्गीकरण हिंसक प्राणी और चिंपांजी के समूह व्यवहार के आधार पर मात्र इन्हीं प्राणियों तक सीमित रखने की जरूरत है। 

प्राणी जगत पर अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों ने 1940 के दौरान निरीक्षण में पाया था कि भेड़िया हमेशा समूह में रहता है। हर समूह में एक भेड़िया उनका नेता होता है, जो अल्फा भेड़िया है। इस अल्फा नेता का व्यक्तित्व, खुमारी, छटा और मांसपेशियों से ऐसा मजबूत और ताकतवर होता है कि अन्य भेड़िया उससे प्रभावित हो कर या फिर खुद को कमजोर मान कर उस एक भेड़िए को अपना रक्षक मान लेते हैं। 

यह अल्फा भेड़िया अपना समूह ले कर चलता है और शिकार करता है। यह अल्फा पहले खुद शिकार को खाता है, उसके बाद ही अन्य भेड़िए शिकार के पास जा सकते हैं। अल्फा भेड़िए की ऐसी धौंस होती है कि जंगल के उसके इलाके में अन्य भेड़िए का समूह नहीं आ सकता। अन्य भेड़ियों के समूह का भी उनका अल्फा नेता होता है। तमाम समूह के अल्फा नेताओं की टेटेटरी को स्वीकार करते हैं। 

अगर कोई इस मूक समझौते को भंग करता है तो खूनी जंग होती है। अल्फा भेड़िया अन्य भेड़ियों को पैर के तलुए के समान मानता है। वह अक्सर मादा भेड़ियों से घिरा रहता है। वह जिस मादा को चाहे प्यार से या फिर खौफ से भोग सकता है। अल्फा भेड़िया गुरुता ग्रंथि से पीड़ित होने के कारण अपने खौफ को बढ़ाने के लिए अन्य भेड़ियों की बारबार उपेक्षा या फिर अपमान करता रहता है। 

इसी तरह चिंपांजी के समूह में नेतृत्व करने वाला एक अल्फा चिंपांजी होता है। हम देखते हैं कि बंदरों का समूह आता है तो उसमें एक अल्फा बंदर होता है। यह अल्फा बंदर जैसे ही स्थान छोड़ता है, बाकी के बंदर बारीबारी से अगले पड़ाव पर जाते हैं।  बंदर तो अब शहरों में घूमने लगे हैं, पर जंगल में ऊंचे कद के चिंपांजी भेड़ियों की तरह समूह में जंगल में रहते हैं। तमाम जंगली प्राणियों में अल्फा और बीटा जैसी व्यवस्था होती है। अल्फा यानी लीडर, सब से प्रभावी मर्द और उसके अंतर्गत जो उसका समुदाय होता है, वह बीटा कहलाता है।

 नेता और कार्यकर्त्ता, गुरु और शिष्य, गैंग लीडर और उसके सहयोगी, लगभग इसी तरह भेड़िए और चिंपांजी के समूहों में व्यवहार होता है। प्राणीशास्त्र के विशेषज्ञों ने भेड़िए के समूह के नेता को अल्फा और उसका अनुसरण करने वालों की बीटा के रूप में पहचान कराई है। 

उन्होंने यह भी देखा है कि तमाम भेड़िए या जंगली प्राणी किसी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं होते। वे अपनी खुमारी से जैसा भी परिणाम आए अकेले ही रहते हैं। ऐसे भेड़िए की उन्होंने सिग्मा के रूप में पहचान दी है। अंग्रेजी में इसके लिए lone wolf शब्द बना है। आज भी जो आतंकवादी या शूटर किसी भी गैंग से न जुड़ा हो और अकेले ही अपना हेतु सिद्ध करने के लिए काम करता हो तो उसके लिए lone wolf शब्द का प्रयोग किया जाता है।

1970 में डेविड मेक ने 'द वुल्फ : इकोलाजी एंड बिहैवियर आफ एन इनडैंजर स्पेसीस' में और 1982 में फ्रांस डी वाल नाम के प्राणीशास्त्री ने 'चिंपांजी पालिटिक्स : पावर एंड सेक्स एमंग एप्स' लिखा। इसमें अल्फा मेल और अन्य भेड़िए और चिंपांजी की मानसिक और शारीरिक लक्षणों के बारे में बताया गया है। अल्फा मेल में आखिर ऐसी क्या खासियत है कि अन्य भेड़िए या चिंपांजी उसे नेता के रूप में स्वीकार करते हैं।

 मादा भेड़िया और चिंपांजी अल्फा मेल से क्यों आकर्षित होती हैं, इसका विश्लेषण किया गया है। अल्फा मेल में निश्चित ऐसी मर्दानगी और छटा थी। समय के साथ पुरुषों को भी अल्फा मैन और बीटा मैन के रूप में भेड़िया और चिंपांजी के समुदायों को आधार बना कर मूल्यांकन करना फैशन मैगजीनों ने शुरू किया। जिस तरह 'माचो मैन' और 'स्वेग' शब्द का मैट्रो जगत में चलन बढ़ा है, उसी तरह अल्फा मैन हिट साबित हुआ।

समाजशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों और प्राणीशास्त्रियों ने भी कई बार चेतावनी दी है कि पुरुष या महिला समाज के लिए अल्फा, बीटा, सिग्मा या जेटा जैसा विभाजन समाज को अलग-अलग ग्रंथियों में विभाजित कर देगा। व्यक्ति अंतरमुखी हो तो भी सफलता पा सकता है और बहिर्मुखी हो तो भी। ऐसी तमाम नौकरियां हैं, जिनमें स्नायुबल और बाहुबल की जरूरत पड़ती है। जब कैटलाक में साफ्ट हैंड अनिवार्य है। 

ऊंचा व्यक्ति भी प्रभाव डालने के साथ अपने ध्येय को प्राप्त करता है और कम ऊंचाई वाला व्यक्ति भी दुनिया पर राज कर सकता है। हां आंखों से या दुनिया का जो मापदंड है, उसके आधार पर व्यक्ति मोहक, बुद्धिशाली, सप्रमाण देह और फीगर वाला है तो उसे प्राधान्य जरूर मिलता है। पर वह जिस हेतु के लिए होता है, उसकी वही काबलियत ही नजर में आती है। 

अमेरिका में 140 खूबसूरत लड़कियां या इनमें जो उच्च शिक्षित थीं, उनसे अल्फा और बीटा क्वालिटी के पुरुषों के साथ कुछ समय बातचीत करके और बिताने की बात की गई तथा खास कर यह सूचना दी गई कि मात्र सेक्स के रूप में ही नहीं, सर्वांगी रूप से आप कैसा पुरुष पसंद करती हैं? यह बात आप को रिपोर्ट कार्ड में लिखना है। सर्वे करने वाली फैशन और मार्केटिंग एजेंसी को लग रहा था कि प्लेब्वाय जैसे हैंडसम और मजबूत मांसपेशियों यानी कि अल्फा मैन को ही ज्यादा लड़कियां पसंद करेंगी। पर बीटा क्वालिटी वालों को भी उतना ही पसंद किया गया था।

दुर्भाग्य से हमारे यहां अल्फा मैन को महिलाओं के साथ सेक्स के रूप में मूल्यांकन किया जाता है। इससे अधिक चिंताजनक ट्रेंड यह बना कि अल्फा मैन यानी कि महिला पर या पत्नी पर प्रभुत्व जमाने और उसे भोगने का खिलौना मानने वाला मर्दाना पुरुष। अल्फा मैन यानी जो चाहे वह प्राप्त करने वाला पुरुष यानी जिसे किसी तरह का लगाव न हो ऐसा पुरुष यह मान्यता भी प्रचलित हुई। 

आज इस तरह के मामले बढ़ते जा रहे हैं, जिनमें किसी लड़के को उसकी मनपसंद लड़की नहीं मिलती तो वह उस पर एसिड अटैक करता है या उसके साथ दुष्कर्म करता है या फिर उसका गला काट देता है। ऐसे पति हैं, जो पत्नी को पैर की जूती समझते हैं और उनके साथ विकृत हरकतें करते हैं। गैंग लीडर बनने की कामना रखते हैं, स्नायुबद्ध देह इसलिए बनाते हैं कि लड़कियों को आकर्षित कर सकें। गुंडागर्दी कर के रौब जमा सकें। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद को अल्फा मैन के रूप में परिचित कराते हैं। ब्रिटिशरों के अनुसार जेम्स बांड अल्फा मैन है।

लड़कों में लघुतागंथि पैदा कर के उन्हें अल्फा मैन बनाने की किताबों का अरबों डालर का बाजार है। अल्फा मैन बनाने वाली क्लासें चलती हैं। हां कुछ जन्मजात और खास देखभाल से व्यक्तित्व विकास, नेतृत्व के गुण या  सभी का दिल जीत लेने वाला व्यवहार और शारीरिक सौष्ठव जरूर पाया जा सकता है। अगर यह नहीं है तो अल्फा मैन नहीं है, यह नहीं कहा जा सकता है। चांद सितारे तोड़ लाने की बात करने वाले मैदान मार ले जाते हैं। अल्फा मैन दूसरों को जीवन देने और जीतने के लिए जरूर बनें, पर किसी को तकलीफ पहुंचा कर मनमर्जी करने के लिए मत बनें। याद रखिए रणबीर कपूर की अल्फा मैन की भूमिका वाली फिल्म का नाम 'एनिमल' है, ह्युमन नहीं। दूसरे अल्फा मैन होना यानी एनिमल होना तो बिलकुल नहीं।

वीरेंद्र बहादुर सिंह 

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