युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
गमलों में सजी हुई
किसी बोनसाई की तरह नहीं हैं
ये तेरी-मेरी प्रेम कविताएं ,
वरन् , ललक हैं ये
धरती पर कहीं भी उग आने की
दूब घास सी..शुद्ध और पवित्र ,
जो कैसे भी हालातों में
बचाए रखतीं हैं,,थोड़ा सा उगना ,
सभी शर्तों को दरकिनार रख
स्वयं को दिया हुआ
एक वचन हैं ये ,
सुनों..
इसे निभाती ही चली जाएगीं
जन्म-जन्मांतरों तक !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश