ईश्वर सुनों

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


आकाशोन्मुख होकर 

हम जिसे देखा करते हैं रोज़

वहां शायद ईश्वर है ही नहीं ,


सुबह की प्रार्थनाओं में,,

दिन-भर उलझनों में उलझते वक्त,,

रात की नीरवता के एकांत में,,

मन के खोए हुए अवसाद में,,


ईश्वर को "यहीं" होना चाहिए

हमारे आस-पास ही ,


उससे कहो..

यदि वह यहां नहीं है

तो बेमानी है उसका 

"और कहीं" होना भी,,

ईश्वर,,,अब तो सुन रहे हो न !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश