देवारी के सरप्राइज

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

          "चल घर ओ रघु के दाई। अबड़ बेरा होगे। कल अउ आ जाबोन। भूख घलो लगत हे। अहादे बेरा घलो ठढ़ियागे हे। मुँड़ ह तीपत हे।" करगा छाँटत राम्हीन ल मयाराम ह मेड़ म ठाढ़े-ठाढ़े हूँद कराइस। 

          करगा ल पुदगत-पुदगत राम्हीन कहिथे- "ले न थोरिक रूक न , ताहन जाबोन।" मुठा के करगा ल मेंड़ म फेंके बर माँगत मयाराम फेर तिखारिस-"घर बुता तो घलो परे हे ओ बही। तिहार लक्ठा गेये हे"। 

          "ले अब काहत हस ते, काली अउ आ जाबोन। देवारी के घर-बुता अड़बड़ बुता ताय। करगा ल डेटरासुद्धा मुरकेटिस, अउ मेंड़ म बम्भुर रुख अरझा दिस।" 

          "मेंड़ बड़ ऊपर हे ओ। दे तोर हाथ ला।" काहत राम्हीन के हाथ ल झींकत खानी मयाराम ल हाँसी आगे। 

          "ले धर, अउ ज्यादा हाँस झन । तोला बड़ हाँसी आत हे।" राम्हीन थोरिक जोरहा आवाज म किहिस। 

          "ले वो बही एक कनी म रिसा जाथस तहुँ हा।" मायाराम राम्हीन संग भुरियाय अस गोठियाइस। 

राम्हीन कहिथे- "घर मा लोग–लइका मन सँसो करत होही अउ तोला मजाक सूझे हे।"

          घर पहुँचीन ता देखथें, रघु हर नानचुन चड्डा ला पहिरे जाला–धुर्रा ला झर्रात रहे अउ उर्मिला निसेनी ला धरे रहे। "अइइइ...अइई.... हाथ–गोड़ ला टोर डरहू का रे।" राम्हीन खिसियाय अस किहिस- भरे तिहार मा तोर जम्मों संगवारी मन फटाका फोड़ही अउ ते खटिया मा परे रहिबे। चल उतर –उतर।" 

          "करन दे न ओ रघु के दाई। तोर बुता जल्दी हो जाही। चल भात ला हेर। पेट म मुसुवा कूदत हे।" मायाराम पेट ल टमरत कहिथे। तभे उर्मिला कहिथे- "बइठ ना तो बाबू। मेहा इडहर कढ़ही राँधे हों।" उर्मिला के गोठ ल सुन के पेट के मुसुवा अउ तरमराये लगिस मयाराम के। खाय बर बइठिस। सरपट–सरपट खाय के बाद मयाराम कहिथे- "वाह ! बेटी, मजा आ गे खाय म। पेट के आगी चुमुक ले बुताइस। कस वो राम्हीन ?" राम्हीन ला तो देवारी बुता के संसो धरे हे। काला हुँकारू देही बिचारी हा।

          आज संझा बेरा ठक ले परोसी लीलावती पहुँचगे। चर-चर ले गहना ला ओरमाये रहे। हूँत करात, "कहाँ हस ओ भउजी.... काम बुता सिरागे या ...." काहत घर म निंगीस। राम्हीन हाथ ला लमावत कहिथे– "काला सिराही या नोनी। खेत के काम ला घलो देखे ला लगथे।"

             "काय होगे भउजी ?" लीलावती ल अचरज लागिस। 

          "अई....! अभी ले तैं हा गहना-गुँठा ला ओरमा ले हस या। बने पूजा-पाठ कर के नइ पहिरतेस या ?" राम्हीन के गोठ ऊपर गोठियाइस- "वा...! येकर बर का पूजा–पाठ करबे भउजी।" 

         दूनोझन गोठियात रहिन, तइसने म रघु लीलावती के बात ला सुन डारिस। कहिथे- "वो हा कहाँ पूजा करही माँ गहना-गुँठा ला। तोला देखाय बर पहिरके आ हे फुफु ह हमर घर ।" नानुक रघु के गोठ ह लीलावती ला थोरिक जरे कस लगिस। तभे मयाराम हर मुहूँ ला टेड़गा करत कहिथे- "चल रे टूरा अब्बड़ गोठियाथस। चल भाग ये मेर ले।" राम्हीन अउ मयाराम घलो हाँस डरथें। 

          "तैं कुछू नइ ले हस का या भउजी येसो के देवारी मा ? लीलावती फेर पूछ परिस। "काला लेबे ओ लीलावती गरीब मनखे। चुरथे ता खाथन बहिनी।" राम्हीन भउजई-चुमकही मारिस। थोरिक बेर ले हँसी-मजाक करके लीलावती अपन घर लहुँटिस।

         आज सुरहुत्ती घलोक आगे। बिहनिया ले मयाराम अउ लोग–लइका उठके पूजा–पाठ के तियारी करे लगिन। रघु अपन संगी मन संग खेले ला भाग गे। ओकर संगी मन पूछथे- "का ले हस रघु येसो देवारी म यार ? फटाका घलो नइ फोरत हस ?" रघु कुछू कहितिस तेकर पहिली लीलावती खोर ल बाहरत लइका मन के बात ला सुन डारिस। टांट मारत कहिथे- "ये मन का ले सकथें गा बाबू हो। रघु ला पूछथस, सरी दिन‌ इँखर घर गरीबी छाए रहिथे। चिरहा ओन्हा ला पहिरके तो येखर दाई–बाबू मन खेत जाथें।

 आज तो लक्ष्मीपूजा करे के बाद जम्मों पारा–परोस के मन सकलाही ता देख लेहू, नानचुन चड्डा ला पहिर के आही ते ला। सबो झन नवा पहिरही ता रघु हा चड्डा ला ओरमाये रही।" हाँसत-हाँसत लीलावती भीतरी म खुसर गे। रघु के संगवारी मन कलेचुप होगें। रघु के एंड़ी के रीस तरुवा चढ़गे। चिल्लावत कहिथे- "हमन तो सरप्राइज रखे हन ओ फुफु, देखत तो रहिबे।" 

          "का...! तुमन मन काय सापराइस रख हू रे।" लीलावती कहिथे। 

          "सापराइस नहीं ओ फुफु, सरप्राईज.... कहिथे। जम्मो लइका मन हाँस डारिन। फेर मुहाटी म आके कहिथे- "देखबोन, तुमन काय रखे हो तेन ला।" 

          घर जा के जम्मों बात ला अपन दाई–बाबू ला बताइस रघु हर- "बाबू सबझन हमन ला गरीब लाचार समझथें, अउ तैं कुछू नइ‌ काहस, अउ मोरो बर तो कुछू नइ ले हस ये साल।" गोठियात-गोठियात रघु गोहार पारके रो डारिस। अब वोला चिंता होवन लागिस कि कहाँ के सरप्राईज दे पाहूँ कहिके।

         मयाराम संझा खेत ले घूमके घर मुस्कावत आइस। कहिथे- "रघु बेटा, वो बारी पार जा तो। रघु मोर पनही ला लान बेटा।" रघु बारी पार जाके देखथे ता,देखते रही जाथे, घेरी–बेरी आँखी ला रमंज–रमंज के देखिस ता नवा रेंजर साइकिल ल देख चकचका जाथे। रघु हर मयाराम कर दउँड़त आके कहिथे- "बाबू ये रेंजर साइकिल मोर बर हरे का ?" मयाराम ले हाव सुनके रघु के खुशी के ठिकाना नइ रहे। 

राम्हीन हर हाँसत रघु ल कहिथे- "ता तोर बाबू बर थोड़ी रही रेंजर साइकिल ह ? वोला चलावत खेत जाही का ?" तभे मयाराम तको मजाक कर देथे- "रघु के छुट्टी के दिन उही म बइठार के लेगहू वो बही तोला खेत।" "टार तोर गोठ ला रघु के बाबू। लइका मन के आघू म रंग-रंग के गोठियाथस। मोला लाज लगथे।" 

          येसो मयाराम ह उर्मिला बर साँटी ले रथे। राम्हीन ला पूछथे- "तोला का चाही ओ रघु के दाई ?" नइ लगे कुछू हमला। लइका मन खुश ता हमूँ खुश।"

         "नहीं ओ...। लागही तहूँ ला।" काहत मयाराम के मया झुमका बनके राम्हीन के दूनो कान म झूलन लागथे। जम्मो झन खुश हो जाथें। रघु के सरप्राइज के संगे-संग सबोझन ला सरप्राइज मिल जाथे। रघु कहिथे- "या ..... ये तो हमरे मन बर सरप्राइज होगे।" ताहन फेर रघु अपन नवा रेंजर साइकिल ला चलावत खोर म निकलिस। राम्हीन झुमका पहिर के घर मुँहाटी के चौंरा म बइठिस। उर्मिला छमछम‌ करत दुवारी मा निकलिस। तभे लीलावती ह ये सबझन ल देख परिस। मुहूँ फारे-के-फारे रहिगे।


लेखिका

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़ 

Priyadewangan1997@gmail.com