गप्प हाँकन कला

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

बैक बेंचरों में गप्प हाँकना एक सृजनात्मक कार्य है। यदि कोई गप्प हाँकने की कला में पटु है और सपने में अक्सर दूर के ढोल सुहावने दिखाई दें तो समझिये कि किसी न किसी की मेहनत लूटने वाली है। या यूँ कहिए कि ईमानदारी और मेहनत के घर घपले का जन्म होने वाला है। जमाने की आर्द्रता में गप्प हाँकुड़ों की नमी हो, तो वहाँ कथनी दिल्ली और करनी चौखट पर दिखाई देगी। बैक बेंचर केवल बैक बैंचर नहीं होते, बल्कि आफत-ए-सरदार होते हैं। जो जितना गप्प हाँकता है, वह उतना ही ऊँचा उठता जाता है।

वैसे इन गप्प हाँकुड़ों का क्षेत्र काफी घेराव लिए होता है। जमीन खरीदने-बेचने के फील्ड में ये उतर आएँ तो वे हाथ आजमाने की जगह मुँह आजमाने लगते हैं। इन गप्प हाँकुड़ों की चले तो प्लाट के बगल से मेट्रो नहीं जाएगी, बल्कि मेट्रो सवारियों को सीधे उनके घर जा-जाकर उतारेगी। गप्प हाँकुड़ों के जबड़े हमेशा लटके होते हैं। यहाँ तक कि मरते समय भी।

 अब भला मुँह का यंत्र चल-चलकर लटकेगा नहीं तो जुड़कर रहेगा। खूब बतकही करने से जबड़े के न दिखाई देने वाले पेंच ढीले पड़ जाते हैं। ऐसे में मुँह का खुला रहना लाजमी है। गप्प हाँकुड़ों का सपना होता है कि मौका मिले तो एक बार लालकिले से गप्प हाँक लें। लेकिन वे भूल जाते हैं कि सरकार से बढ़कर कोई दूसरा गप्प नहीं हाँक सकता। सरकारी गप्प अक्सर शासनादेश की तरह होता है, और वह भी न समझ में आने वाली सरकारी भाषा में। 

इन गप्पों को नकारने में भूलसुधार कम, ढोंग-दिखावा का दावा अधिक होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि गप्प करने का कोई समय, स्थान, धर्म, आचार-विचार, रंग-रूप नहीं होता है। बैक बैंचरों के पास हर समय गप्प हाँकने का समय होता है। आगे चलकर यही बहुसंख्यक बनते हैं फिर उन्हें रोटी चाहे न मिले, पर गप्प की खुराक बराबर चाहिए होती है। जब तक गप्प न हो उनका पेट नहीं भरता है। इडियट बॉक्स टीवी पर अनगिनत चैनल हैं और टीआरपी गप्प उड़ा ले जाता है।

लालकिला गप्प हाँकने का सबसे बड़ा केंद्र है। सर्दी-बरसात में यहाँ से ऐसे गप्प हाँके जाते हैं कि गर्मी में यहाँ आने की जरूरत ही नहीं पड़ती। देश का सबसे बड़ा गप्प हाँकड़ु अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा कर मीडिया को अपनी जेब में लिए घूमता है। दुनिया को दिल का दौरा पड़ता है तो गप्प हाँकुड़ों को लंबी-लंबी फेंकने का। बैंक बैंचर अक्सर आगे चलकर खादीधारी बनते हैं। 

खादीधारी दोपाया प्राणी जितना गप्प हाँकता है वो पार्टी में उतना सक्रिय माना जाता है। बिना किसी की सुने गप्प-गप्प करने वाले गप्पाड़ियों को पार्टियाँ प्रायः अपना प्रवक्ता यानी भोंपू घोषित कर देती हैं। अब उसका गप्प कुछ हद तक पार्टी का गप्प माना जाता है। गप्प अगर पकड़ा जाए तो प्रवक्ता कह सकता है कि मीडिया ने तोड़मरोड़ कर पेश  किया है।

 गप्प की विशेषता ये है कि उससे कभी भी मुकरा जा सकता है। या फिर खिसियानी हंसी के साथ यह भी कहा जा सकता है कि ‘यह तो मजाक था’। आदतन गप्पासुर बुलडोजर की तरह होता है और कहीं भी बकवास करने लगता है, जहां अपेक्षित नहीं हो, या जहां मना हो वहां भी। जैसे किसी के अंतिम संस्कार में पाए गए हैं तो आप देखेंगे कि वहां भी उनके मुंह की जिप खुली है और किए जा रहे हैं। दो मिनिट के मौन की आवाज आती है तो वे ‘नानसेंस’ कहते हुए बड़ी मुश्किल  से आधा मिनिट विश्राम करते हैं और ‘ओमशांति ’ के पहले ही पुनः करने लगते हैं। 

समाचार चैनल-पत्र गप्प को ‘ब्रेकिंग-न्यूज’ बनाने का उद्योग चलाते हैं। उस पर दिनभर के गप्प को शाम तक महागप्प सिद्ध करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। बड़े गप्पाड़ियों के आसपास चमचे होते हैं, वे उन्हें बताते हैं कि उनके गप्प ने ‘आग लगा दी’ है। सुनते ही चौड़े हो गए ‘गप्प सरदार’ को लगता है कि उसके गप्प पेट्रोल हैं, और ‘आग लगाना’ बड़ी उपलब्धि।

 ऐसे में वह अरुणाचल पर बकवास करते हुए चीन की आधी जमीन पर भी कब्जा कर लेता है। ताली मारते चमचे मान जाते हैं कि लोकल लेबल पर अंतरराष्ट्रीय  गप्प कोई छोटी सफलता नहीं है। गप्पासुर इससे बहुत उत्साहित हो जाते हैं जिसका असर उसकी अगले गप्प में साफ झलकता है और बहुत जल्दी इस्राइल पर उसके गप्प के बादल छा जाते हैं। ऐसे में उसका हाथ अपने आप मूंछों पर चला जाता है, जिनकी नहीं होती वे साफ मैदान पर हाथ मार कर जश्न  मना लेते हैं।

 कुछ लोग सेल्फमेड श्रेणी के होते हैं, वे एक आदमी को पकड़ कर भी गप्प हाँक लेते हैं। पीड़ित लोग ऐसे गप्पजॉम्बी को देखते ही पतली गली नाप लेते हैं, वे जानते हैं कि उनकी नजर पड़ी और दुर्घटना घटी। हालांकि सब इतना नहीं डरते हैं, कुछ लोगों की रोजी-रोटी होती है गप्प बटोरना, जैसे हमारी अम्माएँ कभी गोबर बटोर कर उससे चूल्हा जलाती थीं। पापी पेट का सवाल न होता तो वे अवश्य इनसे तड़कते-भड़कते समाचार बना लेतीं। 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657