युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
दिन चाहे हों और कई गुना बड़े..
रातें हों लंबी और अधिक..
महीनों में जुड़ जाएं एक-एक-कर
चाहे कुछ और नई तारीखें..
कलैंडरों को मिल जाएं कुछ और नये पन्नें..
इतनी कोशिशों पर भी
छूटा ही रह जाता है हर बार,, बहुत कुछ ,
अनकहा,, निशब्द,,अधजिया सा..
शायद इसीलिए बहुत ही बेबाकी से बात करती हैं
वो छूटी हुई तारीखें,, छूटी हुई कविताएं,,
और वो तमाम छूटी हुई बातें..
जरूरी था जिनका "होना" उसी समय पर !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ , उत्तर प्रदेश