खुद से खुद को चुराना है

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

कुछ पल के लिए खुद को खुद से चुराना है,

ज़िम्मेदारियों से इतर नया तराना गाना है।

वो पल खुशियों को समेटे सिर्फ मेरा होगा,

पँख लगाकर नील गगन में मुझको उड़ जाना है।

मेरी प्रिय सखी कलम भी होगी मेरे साथ,

पल्लवित कुसुम होंगे,न होगा कोई अवसाद।

नये शब्दों की लहर से पन्नों को सजाऊँगी,

न सोचूँगी,न समझूँगी सिर्फ खुशियाँ मनाऊँगी।

कुछ पल के लिए ही सही निर्झरिणी बन जाना है,

प्रस्तरों को चीरकर सुलभ सुगम राह बनाना है।

मन की कुंठाओं को तजकर शांत चित्त मनन है करना,

रूढ़ियों की तोड़कर दीवार मुझको है बस बढ़ते रहना।

जानती हूँ एहसासों में लिपटा क्षणिक वो पल है,

जानती हूँ आज में है जीना,सपनों न कोई कल है।

फिर भी उस एक पल का है मुझको इंतज़ार,

क्षणिक ही सही उस पल में जी लूँगी सौ बार।


डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ)