युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
स्त्री जब करती है दीपावली की सफाई,
फेंकती है कई बेकार चीज़ों को,
पर सहेजती है अपने बच्चों की
सबसे प्यारी यादों को,
उन खिलौनो को जो भले ही
बहुत पुराने होते हैं लेकिन
एक समय में वो उनके बच्चों के
सबसे प्यारे होते हैं।
आँखों के कोरों से स्मृतियों की
लड़ियां फिर बहने लगती हैं,
और दृग पटल पर पुनः
निज बच्चों की वो प्यारी
किलकारियां सजने लगती हैं।
सच,दिन कितनी जल्दी बीत जाते हैं,
पर कुछ यादें सदा जीवंत रह जाते हैं।
यादों के पिटारे से कुछ प्यारी
तस्वीर भी निकल कर आती है,
जो बेफिक्र दिनों की याद हमें दिलाती है।
सखियों के संग बिताये पल की जब तस्वीरें मिलती है,
धुंधली वे तस्वीरें जीर्ण यादों को फिर से सिलती हैं।
नहीं फेंकते उन स्वर्णिम यादों को,
हँसी ठिठोली और उन प्यारी बातों को,
मायके की प्यारी गलियों को,
माँ की दी हुई आख़िरी निशानी को,
हाँ, वो चीज़ें कभी पुरानी होती ही नहीं,
क्योंकि वह सामान नहीं
हमारी यादों का पिटारा होता है,
वो सबसे खुशनुमा एहसास होता है।
रख देती हूँ हर वर्ष उन्हें सहेजकर,
दीपावली की सफाई में
अतीत की यादों को बटोरकर।
कवि मन निरंतर चलता रहता है
तभी तो दीपावली की सफाई में भी
कई कविताएँ रच लेता है।
डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ )