युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
बाल रेशमी ,गाल रेशमी
मुस्कान रेशमी परिधान रेशमी,
नज़र रेशमी फिज़ा रेशमी।
मैंने पूछा रेशम से,
तुम कितने रेशमी?
कुछ रुआंसा हो
नन्हा कीट रेशम का
धीरे-धीरे फुसफुसाया।
सबको रेशमी करते-करते
मैं कहां जी पाया।
उपज अंडज से मैं जब
कोमल इल्ली बना,
जीवन यात्रा के
अगले काल खंड में
मेंने बहुत श्रम किया।
मुख अपने से तार रेशमी निकाल,
ढंक लिया मैंने तन सारा।
बना काकून बस यही हे दोष मेरा,
मानव ने डाला खोलते जल में मुझे,
इसी रेशमी तार को
मेरे शरीर से उधेड़ लिया।
बुन कर्घे पर वस्त्र बना लिया,
रेशमी परिधान में सजे देवी-देव, इष्ट,
राजे -महाराजे स्त्री -पुरुष।
पहन रेशमी साड़ी
दुल्हनें बैठी विवाह वेदी में,
मेरा निर्जीव शरीर बहा नाली में।
नहीं जानता यह क्रूर खेल
क्यों खेला प्रकृति ने मेरे संग।
मैं असहाय जीव बना
मानव के तन की शोभा,
मुझे मेरे ही गुण ने क्यों ठगा।
बेला विरदी
1382, सेक्टर-18,
जगाधरी- हरियाणा
8295863204