भक्ति

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


जो सगुणी सँग। निर्गुणभक्ति,

सकाम रहो तब निष्फल जाती। 

भक्ति सकाम मृषा अति हेय,

तिजारत वृत्ति न तापस थाती। 


नित्य अहैतुक  प्रेम समर्पण, 

दम्भ  हटा शरणागति   लाये-

योग वृथा गुरु ज्ञान सु-धारण, 

भक्ति-सुगन्धधरा पर लाती। 


कथ्य सुजान,बिना सत-भक्ति,

नहीं जग क्षेम नहीँ जन-सेवा।

चित्त कु-भाव विनाश करे,  

अनुराग विराग प्रवाहित रेवा। 


भक्ति सुधा रख इष्ट हिया,

तप त्याग विशुद्धि हरे भव पीड़ा-

पूज्य  परस्पर भक्ति रखेँ, 

तज स्वार्थ धरें मन स्वस्थ कलेवा।

  

 मीरा भारती,

 पटना,बिहार।