सूर्योपासना का महापर्व छठ

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

मनुष्य ने पर्व को उत्सव बनाने के लिए प्रकृति और पर्यावरण का ही सहारा लिया है। हम सब जानते हैं कि सूरज से ही जीवन है। प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा भी सूरज ही करता है। इसलिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी एवं सप्तमी 4 दिनों तक लगातार चलने वाला छठ पर्व भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी काफी धूमधाम से मनाया जाता है। सभी लोग घाट पर सूर्य के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं और उनसे बहुत कुछ मांगते हैं क्योंकि पूरा जीवन देने वाला तो वही है। वह एकमात्र देवता है जिनकी डूबते समय भी पूजा होती है। 

छठ पर्व सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व बिहार वासियों का सबसे बड़ा पर्व है। ये हमार संस्कृति है। स्वच्छता का प्रतीक है। इन दिनों लोग अपने घर के प्रत्येक सामान की साफ- सफाई करते हैं। साथ ही सार्वजनिक स्थलों को भी साफ करते हैं। बिहार और आसपास के राज्यों में सूर्योपासना का पर्व 'छठ' धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

छठ पर्व में भारतीय जीवन दर्शन भी समाहित है। यह समूचे विश्व को बताता है कि उगते हुए अर्थात उदीयमान सूर्य को तो संपूर्ण जगत प्रणाम करता है लेकिन हम तो उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ ससम्मान डूबते हुए अर्थात अस्ताचलगामी सूर्य की भी उपासना और पूजा करते है। सूरज का समय अटल है। यह हमारे भारतीय समाज का आशावादी विश्वास है।

इतनाही ही नहीं इस पर्व में सभी जातियों का सहयोग लिया जाता है। डोम से दउरा- सुपली, ग्वाला से दूध, माली से पान-फूल, कुम्हार से मिट्टी के बर्तन आदि लेकर पूजा में शामिल किया जाता है। इसमें गन्ना, अदरक, नींबू, नारियल, लौंग, इलायची, मूली, मटर सहित कई फलों आदि से सूर्य को अरक दिया जाता है। इससे कई परिवारों की रोजी-रोटी भी चलती है। सभी वर्ग आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्त होते हैं। छठ समाज को एक करने वाला व्रत है।

इस पर्व के समय प्रतिदिन नशा करने वाला शराबी भी शराब पीना छोड़ देता है। हालांकि आजकल बिहार में शराबबंदी है। खैनी खाकर जहां-तहां थूकने के लिए बदनाम लोग भी अपने घर और आंगन के आसपास ही नहीं बहुत दूर-दूर तक सड़क की भी साफ- सफाई स्वयं करते हैं। जमींदार लोग जिनके यहां सफाई करने के लिए आदमी रखे जाते हैं, वह स्वयं अपने हाथों से सड़क की सफाई करते हैं और लोग यत्र- तत्र थूकने से बचते है।

सूरज सब से जुड़े हुए हैं इसलिए वह सबको जोड़ देते हैं। जाति- वर्ग, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष सब मिलकर एक घाट पर एक साथ सूरज को प्रणाम करते हैं। यह सभी को जोड़ने वाला पर्व है। एक आदर्श पर्व है। अनुकरणीय पर्व है। बड़ा ही प्यारा और सुखद अनुभूति होती है। 

बिना सामूहिक हुए पर्वों का आनंद नहीं लिया जा सकता है। इसलिए परिवार से दूर रहने वाले सभी लोग अपने घर आ जाते हैं। बच्चे अपने दादा-दादी एवं नाना-नानी सहित परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर खुशियां मानते हैं। इस दिन घर में तरह-तरह के पकवान बनता है। अपनी शक्ति और श्रद्धा के अनुसार गरीबों में मिठाइयां कपड़ा आदि बांटते हैं। सामूहिक रूप से पर्व मनाते हैं। छठ पर्व सामाजिक समरसता का प्रतीक हैं। विज्ञान आधारित हैं।

 डॉ0 नन्दकिशोर साह

ईमेल- nandkishorsah59@gmail.com

मोबाईल- 9934797610