मत्तगयंद सवैया

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

   विजयादशमी

संस्कृति उत्सव पुष्प चुनें हम,आश्विनशुल्क प्रभा जबभाती। 

भाव सुहान रखें  युग मन्दिर, वंदन  हेतु  जला कर   बाती।। 

मोह  कुभाव  विराग वरें हम, अंतस स्नेहिल हो गुण थाती। 

 त्याग करे जनता मद मत्सर, भक्ति सजा नव रात मनाती।।

शक्ति नहीं  सहयोग रखें चित, तंत्र निवेेश प्रयास सिखाते। 

 मातृ निषेवण हो समवाय,  एकल  चित्त  स्व-धर्म सजाते।।

 बाल निबोध धरें हनुमान  प्रभाव, न राम सुकाज अघाते।

 रोष  बदी तज प्रेम कतार बना, युव सेवक योग्य  कहाते।।

 निषेवन = पूजा, समवाय=सामूहिक, निबोध= शिक्षण,

 कतार =श्रृंखला।

    मीरा भारती,

    पटना,बिहार।