मजबूत संगठन ही सर्वाइव होता है-

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

बिजली पेंशनर्स-कर्मी, संगठनों का सहयोग करें...!

बार-बार सपनों के मरने से, सपनों की सड़ांध पूरे कर्मयोगी समाज को संक्रमित कर देती है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण मध्यप्रदेश के बिजली कर्मचारी हैं।

जमीनी स्तर पर बिजली कर्मचारियों की हताशा एवं संगठनों के प्रति टूटते विश्वास को देखकर अब यह प्रतीत होता है कि जल्द ही मध्यप्रदेश के युवा बिजली कर्मचारी, सत्ता के सामने असहाय हो जाऐंगे याने बौने साबित होंगे तथा संपूर्ण बिजली क्षेत्र को पूर्ण लाभ में चलने वाली मध्यप्रदेश ट्रांसमिशन कंपनी की तरह ही बड़ी तेजी से सरकारों की मंशानुसार निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा, ऐसी संभावना, हमारे अंदर बलवती होने लगी है।

इसलिए बिजली क्षेत्र में कार्यरत सभी कर्मचारी, पेंशनर्स वर्गों के संगठनों से अपील है कि सच्ची समाजसेवा के सिद्धांतों के अनुसार बिजलीकर्मियों के हितों के संरक्षण में अपना संपूर्ण योगदान दें, अन्यथा समाजसेवी, श्रम हितैषी होने का बाना ओढ़ना बंद करें।

सभी नेतृत्व अपने मन की बात नहीं बल्कि अपने कर्मचारी, पेंशनर्स परिवार के सदस्यों के मन की बात सुनें अन्यथा  अस्तित्व व उत्तरजीविता  की लड़ाई में विफलता के लिए

बराबर के जिम्मेदार ये सभी होंगे।

कर्मचारी /पेंशनर्स- इस भ्रम में नहीं रहे कि अपने हक के संघर्ष

के लिए, अन्य जा रहे हैं तो मैं नहीं जाऊंगा तो क्या फर्क पड़ेगा।

देखिए- जिंदगी में संघर्ष जरूरी है इसलिए जो लोग, कर्मचारी नेता, पेंशनर्स, संगठन आपके हक/अधिकार/अस्तित्व के लिए जिन गतिविधियों, संघर्ष, प्रदर्शन-आंदोलन में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैंं उन्हें आप तनमनधन से हिस्सेदारी/सहयोग देकर/ अपनी उपस्थिति देकर कर्मचारी/पेंशनर्स संगठन, नेतृत्वकर्ताओं को मजबूती प्रदान कर स्वयं के हितों को साधने में, अहम, महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

मगर यदि यह इच्छा सहयोग की तभी आयेगी जब हमारे सामने व अपनी ओर से कोई ऐसी बहाने बाजी ना हो।

जैसे - ये बातें आम हो गई हैं-

मेरा फोटो नहीं छपा, इसलिए मैं नहीं आया।

मेरा निमंत्रण पत्रिका में नाम नहीं था, इसलिए मैं नहीं आया।

मुझे उसमें कुछ मिलने वाला नहीं था, इसलिए मैं नहीं आया।

मुझे कोई पद नहीं मिला, इसलिए मैं नहीं आया।

मुझे कोई सुनता नहीं है, इसलिए मैं नहीं आया।

मुझे कोई सूचना नहीं थी, इसलिए मैं नहीं आया।

मुझे स्टेज पर नहीं बैठाया, इसलिए मैं नहीं आया।

मेरा सम्मान नहीं किया, इसलिए मैं नहीं आया।

मुझे बोलने का मौका नहीं दिया, इसलिए मैं नहीं आया।

बार-बार आर्थिक बोझ मुझ पर डाल दिया जाता है,

इसलिए मैं नहीं आया।

सभी कार्य मुझे ही सौंप दिया जाता है,

 इसलिए मैं नहीं आया।

कोई सुझाव मुझसे लिए जाते नहीं हैं, इसलिए मैं नहीं आया।

टाईम नहीं मिल रहा है, इसलिए मैं नहीं आया।

- तलवार की धार पर चलना होता हैं जब कोई लड़ाई, संघर्ष, समाज/श्रम हितैषी "औरों की हितकारी"  गतिविधियों में साथ या सहयोग देना होता हो। ऐसा हरकोई नहीं कर सकता और बुजदिलों, कमजोरों के बस का नहीं होता।

जिंदगी में संघर्ष आवश्यक हैं, बिना संघर्ष निखर जाना आसान नहीं। इसलिए जो लोग श्रमिक हित/समाज हित/

याने कर्मचारी/पेंशनर्स/बुजुर्ग/कमजोरों की लड़ाई में आगे होकर समर्पण से योगदान दे रहे हैं, उन सर्वहारा के हितों, मांगों के लिए आप भी तनमनधन से और कंधे से कंधा मिलाकर जीवटता से सहयोग कर सकते हैं, इसके लिए ऐसे विचारों को मन में खड़ा करना होगा और सशरीर हरेक गतिविधियों में उपस्थिति हों, ऐसा कठोर निर्णय आपको लेना होगा।

मदन वर्मा " माणिक "

इंदौर, मध्यप्रदेश