दोबारा लिखने की कवायद..

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

मैं "लिखती" हूं यूं भी

कि रिक्त करती रहूं 

स्वयं को

स्वयं की ही उदासियों से

लिख-लिखकर ,,

या फिर,,करती रहूं बातें स्वयं से

जो किसी ने कभी सुनी ही नहीं,,

या फिर,,कहती रहूं स्वयं से

वो कुछ अनमना सा 

स्वीकार नहीं सकी थी जिसको

वक्त रहते ही,,

या फिर,,गुनती रहूं स्वयं में

कुछ पूरी - कुछ अधूरी कविताएं,,


इतने पर भी

लिखे से

कुछ न कुछ छूट ही जाता है

हर बार

कहीं न कहीं ,

और.. शुरू हो जाती है

ठीक वहीं से

दोबारा लिखने की कवायद !!

नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश