अवसाद हरो

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


श्रान्त मन,अविचल गात में उर स्पंद तुम भर दो,

चिर स्मृति की रेखाओं से अवसाद तुम हर लो।

नहीं है कुछ शेष अब, झरे रागिनी के खद्योत अब,

धूमिल हुए अरुणोदय को लोहित तुम कर दो।


झंझा की प्रवल आवेग सम चिर निद्रा से जगा दो,

शून्य हुई भवनाओं में सुरभित पुष्प खिला दो।

अंकित है जो शूल हृदय पर क्या उसका कोई मोल नहीं?

दरस दिखाकर मेरे मोहन अधर-मुस्कान सजा दो।


लघु जीवन के शेष प्रहर में बादल बन तुम छा जाओ,

तृषा से आकुल इस रमणी की प्यास तुम बुझा जाओ।

तुम हो इक मधुप,पा स्पर्श खिल उठता कलियों का रूप,

पलक पांवड़े हूँ बिछायी, मुझको भी तो प्रेम रस पिला जाओ।


डॉ.  रीमा सिन्हा (लखनऊ )