कभी आ भी जाना

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

बस वैसे ही जैसे

परिन्दे आते हैं आँगन में

या अचानक आ जाता है

कोई झोंका ठण्डी हवा का

जैसे कभी आती है सुगन्ध

पड़ोसी की रसोई से।

आना जैसे बच्चा आ जाता

है बगीचे में गेन्द लेने

या आती है गिलहरी पूरे

हक़ से मुण्डेर पर।

जब आओ तो दरवाज़े

पर घण्टी मत बजाना

पुकारना मुझे नाम ले कर

मुझसे समय लेकर भी मत आना

हाँ , अपना समय साथ लाना

फ़िर दोनों समय को जोड़

बनायेंगे एक झूला

अतीत और भविष्य के बीच

उस झूले पर जब बतियायेंगे

तो शब्द वैसे ही उतरेंगे 

जैसे कागज़ पर उतरते हैं

कविता बन।

और जब लौटो तो थोड़ा

मुझे ले जाना साथ

थोड़ा ख़ुद को छोड़े जाना

फ़िर वापस आने के लिए

ख़ुद को एक-दूसरे से पाने

के लिये !

सुमंगला सुमन 

मुंबई, महाराष्ट्र