ईमानदार मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

ईमानदारी सबसे बड़ा गहना है। 

सबसे बड़ा सुख जीवन का ईमानदारी से दो वक्त की रोटी खाना है। 

हर व्यक्ति को अपना जीवन ईमानदारी से काटना चाहिए पता नहीं क्यों चार दिन की जिंदगी में कुछ मनुष्य बेईमानी से ही अपना जीवन काटना चाहते हैं। कुछ तो ऐसा सोचते हैं कि जब तक हम जिएंगे तब तक दूसरे का हिस्सा मार कर जिएंगे। मनुष्य भूल जाता है कि जिस बेईमानी से वहां अपना जीवन यापन कर रहा है यह अपने बच्चों का पालन पोषण कर रहा है वही उसके लिए सबसे बड़ा श्राप होगा।

बेईमान व्यक्ति को बहुत जल्दी ही अपने घर में बर्बादी दिखने लग जाती है। ईमानदारी तो ईश्वर का दिया हुआ वह प्रसाद है जो सबको ही ग्रहण करना चाहिए। एक कहावत है जब कभी चार कंधों पर अर्थी घर से शमशान के लिए रवाना होती है तब उस पर सिक्के फैके जाते हैं सिर्फ इतना सा एहसास दिलाने के लिए कि जिस पैसे की खातिर जीवन भर तू तेरा मेरा तेरा मेरा करता रहा।

आज हिम्मत है तो एक सिक्का अपने साथ लेकर चला जा। नहीं ले जा सकता कोई भी मृत्यु के बाद अपना एक सिक्का तक अपने साथ नहीं ले जा सकता। धरती पर मनुष्य जब तक जिंदा है ईश्वर उसका पालन पोषण कर रहा है फिर क्यों बेइमानी से अपना जीवन कटना और लालच करना। बहुत पाप हो चुका अब सुधरने का समय है। इस कलयुग में पाप की सजा औलादे भी उठती हैं।

एक छोटे से गांव में नंदू नाम का एक बालक अपने निर्धन माता पिता के साथ रहता था।

उसी गाँव में एक दिन दो भाई अपनी फसल शहर में बेचकर ट्रैक्टर से अपने गांव वापिस आ रहे थे।

फसल बेचकर जो पैसा मिला वो उन्होंने एक थैली में रख लिया था। अचानक एक गड्डा आ गया, ट्रैक्टर उछला और थैली नीचे गिर गई ।

जिसे दोनों भाई देख नहीं पाएं और सीधे चले गए।

उधर बालक नंदू,  खेलकूद कर रात के अंधेरे में अपने घर जा रहा था।

अचानक उसका पैर किसी वस्तु से टकराया। देखा तो पता चला कि किसी की थैली है। जब नंदू ने उसे खोलकर देखा तो थैली में नोट भरे हुए थे।

वह सोचने लगा की पता नहीं किसकी थैली है और अगर यही छोड़ गया तो कोई और इसे उठा ले जाएगा।

वो मन ही मन सोचने लगा ‘जिसकी यह थैली है उसे कितना अधिक दुख और कष्ट हो रहा होगा।

हालाँकि लड़का उम्र में छोटा था और निर्धन माँ बाप का बेटा था।

वह थैली को उठाकर अपने घर ले आया। उसने थैली को झोपड़ी में छुपा कर रख दिया।

फिर वापस आकर उसी रास्ते पर खड़ा हो गया।

इधर जब थोड़ी देर बाद दोनों भाई घर पहुंचे तो ट्रैक्टर में थैली नहीं थी । दोनों भाई यह जान निराश होते हुए बहुत दुखी होने लगे।*पूरे साल की कमाई थैली में भरी थी।

उन्होंने विचार किया कि शायद अभी वह किसी के हाथ ना लगा हो यह सोच दोनों भाई टॉर्च लेकर उसी रास्ते पर वापस चले जा रहे थे।

छोटा बालक नंदू उन्हें रास्ते में मिला और उनसे पुछा ‘आप लोग क्या ढूंढ रहे हैं? उन्होंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया।

उसने दोबरा पूछा ‘आप दोनों क्या ढूढ़ रहै हो। उन्होंने कहा? अरे कुछ भी ढूंढ रहे हैं तू जा तुझे क्या मतलब।*

दोनों आगे बढ़ते जा रहे थे। नंदू उनके पीछे चलने लगा।

उसने तीसरी बार फिर पूछा, तो चिल्लाकर एक भाई ने कहा ‘अरे चुप हो जा और हमें अपना काम करने दे। दिमाग, खराब ना कर।

अब नंदू को पूरा विश्वास हो गया कि वो थैली अवश्य ही इन्हीं की ही है। 

फिर उसने  पूछा ‘आपकी थैली खो गई है क्या ?

दोनों भाई एकदम रुक गए और बोले हां।

नंदू बोला ‘पहले थैली की पहचान बताइए।

जब उन्होंने पहचान बताई तो नंदू उन्हें अपने घर ले गया। छुपाई हुई थैली लाकर उन दोनों भाइयों को सौंप दी।*

दोनों भाइयों के प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। नंदू की इमानदारी पर उन्होंने इनाम के तौर पर कुछ रुपए देने चाहे, पर नंदू ने लेने से मना कर दिया बोला ‘यह तो मेरा कर्तव्य था।

दूसरे ही दिन वह दोनों भाई नंदू के स्कूल पहुंच गए।

उन्होंने बालक के अध्यापक को यह पूरी घटना सुनाते हुए कहा, हम सब विद्यार्थियों के सामने उस बालक को धन्यवाद देना चाहते हैं।

अध्यापक ने बालक की पीठ थपथपाई और पूछा ‘बेटा, पैसे से भरे थैले के बारे में अपने माता पिता को क्यों नहीं बताया ?

नंदू बोला, गुरूजी मेरे माता-पिता निर्धन हैं और कहीं रुपयों को देख........

अध्यापक ने कहा कि,"बेटा तूने गरीब होकर भी ईमानदारी को नहीं छोड़ा।

स्टेज पर सभी बच्चो के बीच जोर दार तालियों से वातावरण में एक ख़ुशी का माहौल बन गया।

शिक्षा:-

जहाँ दवा काम नहीं करती वहां दुआएं काम करती हैं इसलिए इस छोटे से बालक ने अपने ईमान को नहीं खोया भले ही उसकी गरीबी कष्टदाई थी।

ईमानदार मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है

लेखिका-ऊषा शुक्ला

चमकनी-घंटाघर

शाहजहांपुर यूपी