ग़ज़ल: यूँ पिता को जज़ा दीजिए

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


यूँ पिता को जज़ा दीजिए 

तुम बना ख़ुद को असा दीजिए

कल का कूड़ा पड़ा आज में 

आग उसमें लगा दीजिए 

ग़म से अफ़सुर्दा है लब मिरे

कुछ सुना कर हँसा दीजिए

लौटकर आती है लाज़मी 

गर किसी को दुआ दीजिए 

झूठ का दाग़ हो शक्ल पर

यार को आइना दीजिए

तज़मीन-

मय से बुझती नहीं प्यास है'

'मुझको पानी पिला दीजिए'

प्रज्ञा देवले ✍️